सोमवार, 18 जुलाई 2011

जीवन का लक्ष्य मनुष्य बनना

जीवन का लक्ष्य मनुष्य बनना  

                                       


जीवन में लक्ष्य का बड़ा महत्त्व होता है . मनुष्य अपने जीवन में जिस लक्ष्य का निर्धारण कर लेता है तो उसी प्रकार उसकी जीवन-शैली बन जाती है . सबसे पहले व्यक्ति को मनुष्य बनना पड़ता है . पहले मनुष्य संसार के व्यवस्थापक प्रभु के दिव्य गुणों को मनुष्य समझे और फिर उन गुणों को समझकर अपने जीवन में धारण करे . तभी इस शरीर में मनुष्यता का जन्म होता है , केवल मानव - आकृति धारण करने से नहीं .



ज्ञान का लाभ तभी है जब वह आचरण का अंग बन जाये . क्योंकि जानना , मात्र जानने के लिए नहीं ; अपितु कुछ करने के लिए है . जो ज्ञान कर्म के साथ नहीं जुड़ता , वह निरर्थक है , वाहक के ऊपर लदे बोझ के समान है . जैसे गधे पर चन्दन लदा है तो वह उसके बोझ को तो अनुभव करता है , किन्तु चन्दन से काया लाभ है और उससे कैसे सुख प्राप्त किया जाता है ? वह इस बात को नहीं जानता .*****

                                                 
                                        



तुलसी के गुण

तुलसी के गुण

                                             


  1. तुलसी की पत्तियों में कई ओषधियाँ पायी जाती हैं .

  2. तुलसी की सुगंध श्वास-सम्बन्धी कई बिमारियों से बचाती है .

  3. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि .  

  4. ह्रदय-रोग तथा सर्दी - जुकाम में लाभ-दायक .


    पत्तियों को चाय में उपबालकर सर्दी-जुकाम और बुखार में लाभ .

  5. तुलसी की पत्तियों के चबाने  से जुकाम , सर्दी और बुखार में लाभ . साथ में नीम की पत्तियों का सेवन भी दांत के रोग से रक्षा करता है .

  6. खून में कोलस्ट्राल के स्तर में कमी .

  7. पत्तियों में तनाव रोधी गुण भी .

  8. मूंह के छाले और दुर्गन्ध की समस्या भी दूर .

  9. दाद , खाज - खुजली में और त्वचा सम्बन्धी अन्य रोगों में तुलसी का अर्क लगाने से लाभ .

  10. तुलसी के काढ़े से सिर-दर्द में अत्यधि लाभ .*****

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देव शयनी एकादशी

देव शयनी एकादशी

                                          

आषाढ़ी एकादशी , पद्मा एकादशी और हरिशयन एकादशी आदि ये सारे नाम एक ही एकादशी के हैं . शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए क्षीर सागर को प्रस्थान करते हैं . क्योंकि चार मास वे क्षीर सागर में रहते हैं ,. चार महीने के विश्राम के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु वैकुण्ठ लौटते हैं . इस दिन को प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं . वास्तव में यह काल वर्षा - ऋतु का काल होता है . इसमें आवागमन सरल नहीं होता था . अत: इसे धार्मिक आस्था से सम्बद्ध कर दिया गया है .

 आज के युग में चातुर्मास का सामाजिक दृष्टिकोण अधिक महत्त्वपूर्ण है . क्योंकि ये चार महीने खेती - किसानी के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं . इसलिए दूरदर्शी आचार्यों ने कृषि - कर्म को महत्त्व देने के लिए विशेष आयोजनों , शुभ - कार्यों व यात्रा आदि को वर्जित करने का प्रावधान रखा।   

इसके अतिरिक्त चातुर्मास वर्षा - काल होता है . चिकित्सा-विज्ञान भी मानता है कि ऐसे समय में जीवाणु व रोगाणु अधिक सक्रिय रहते हैं . इधर - उधर की यात्रा से अथवा आयोजन में अनेक लोगों के एकत्रित होने से संक्रमण के फैलने का अंदेशा रहता है , इसलिए भी यह प्रावधान समीचीन प्रतीत होता है .
आयुर्वेद में इन चार माह के दौरान पत्तेदार शाक- सब्जी खाना वर्जित बताया गया है . इस समय मनुष्य का पाचन - तन्त्र कमजोर हो जाता है . ऐसे में एक दिन का व्रत रखकर शरीर को निरोगी रखने का प्रयास किया जाता है . इससे कर्म के संकल्प को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है .*****