सोमवार, 18 जुलाई 2011

देव शयनी एकादशी

देव शयनी एकादशी

                                          

आषाढ़ी एकादशी , पद्मा एकादशी और हरिशयन एकादशी आदि ये सारे नाम एक ही एकादशी के हैं . शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए क्षीर सागर को प्रस्थान करते हैं . क्योंकि चार मास वे क्षीर सागर में रहते हैं ,. चार महीने के विश्राम के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु वैकुण्ठ लौटते हैं . इस दिन को प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं . वास्तव में यह काल वर्षा - ऋतु का काल होता है . इसमें आवागमन सरल नहीं होता था . अत: इसे धार्मिक आस्था से सम्बद्ध कर दिया गया है .

 आज के युग में चातुर्मास का सामाजिक दृष्टिकोण अधिक महत्त्वपूर्ण है . क्योंकि ये चार महीने खेती - किसानी के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं . इसलिए दूरदर्शी आचार्यों ने कृषि - कर्म को महत्त्व देने के लिए विशेष आयोजनों , शुभ - कार्यों व यात्रा आदि को वर्जित करने का प्रावधान रखा।   

इसके अतिरिक्त चातुर्मास वर्षा - काल होता है . चिकित्सा-विज्ञान भी मानता है कि ऐसे समय में जीवाणु व रोगाणु अधिक सक्रिय रहते हैं . इधर - उधर की यात्रा से अथवा आयोजन में अनेक लोगों के एकत्रित होने से संक्रमण के फैलने का अंदेशा रहता है , इसलिए भी यह प्रावधान समीचीन प्रतीत होता है .
आयुर्वेद में इन चार माह के दौरान पत्तेदार शाक- सब्जी खाना वर्जित बताया गया है . इस समय मनुष्य का पाचन - तन्त्र कमजोर हो जाता है . ऐसे में एक दिन का व्रत रखकर शरीर को निरोगी रखने का प्रयास किया जाता है . इससे कर्म के संकल्प को एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है .*****  

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