सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

चिंता अनागत की करे बीते का गम खाए

 चिंता अनागत की करे बीते का गम खाए । कल और कल के पाट में वर्तमान पिस जाए


किसी प्रकार की आशा मनुष्य को शांत नहीं रहने देती । जहाँ आशा होती है वहां निराशा होती है । आशा के बिना निराशा नहीं होती , जब आदमी निराश होकर अशांत हो जाता है , उसकी बुद्धि भी काम नहीं करती । आखिर सब भगवान पर छोडकर उसे चैन नहीं मिलती है । यदि आरम्भ से ही आशा न की जाए और सब काम भगवान की शरण में किया जाए ,भगवान को अर्पण कर किया जाए तो बीच की निराशा और अशांति की अवस्थाएँ जीवन से दूर हो सकती हैं । 


मनुष्य की आदत है कि वह वर्तमान को भविष्य में धकेलता रहता है । दिन भर यही सोचता रहता है कि जब भविष्य में यह हो जायेगा , वह हो जाएगा तो मेरी इच्छा पूरी हो जाएगी । इस प्रकार वह भविष्य में जीता है , जो उसके दिल के टूटने का कारण होता है , क्योंकि उसकी इच्छाएं पूरी हों या न हों इसका उसे विश्वास ही नहीं होता। यदि वह वर्तमान में जिए तो भविष्य अपने आप में सुधर सकता है।


 भूत और भविष्य की कल्पनाओं से मन भर जाता है तो जीने का आनन्द समाप्त हो जाता है । उस सब को दूर कर दिया जाए तो व्यक्ति वर्तमान में जीना सीख जाए । मनुष्य वही जीवित है जो वर्तमान में जीता है _ " चिंता अनागत की करे बीते का गम खाए । कल और कल के पाट में वर्तमान पिस जाए ॥ "
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