वैदिक-शान्तिपाठ तो पूर्ण रूप से पर्यावरण की सजगता का प्रतिरूप
हिंसा और आतंक से सुलगते विश्व में अमन चैन कायम करने के लिए आज उन शक्तियों को आगे आना चाहिए , जिनकी अहिंसा, करुणा और मैत्री में आस्था है। जिस दिन संसार में ऐसी शक्तियाँ उभर कर सामने आयेगीं , उस दिन दुनिया बिना खून-खराबे के सुख-चैन से रह सकेगी। यह संसार के लिए दुर्भाग्य की स्थिति है कि क्रूरता और बर्बरता ने मनुष्य को हिंसक और नृशंस बना दिया है। जिस देश ने अहिंसा,करुणा के आधार पर सम्पूर्ण विश्व में अपनी महत्ता स्थापित की थी , आज उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी है।
हिंसा और आतंक से सुलगते विश्व में अमन चैन कायम करने के लिए आज उन शक्तियों को आगे आना चाहिए , जिनकी अहिंसा, करुणा और मैत्री में आस्था है। जिस दिन संसार में ऐसी शक्तियाँ उभर कर सामने आयेगीं , उस दिन दुनिया बिना खून-खराबे के सुख-चैन से रह सकेगी। यह संसार के लिए दुर्भाग्य की स्थिति है कि क्रूरता और बर्बरता ने मनुष्य को हिंसक और नृशंस बना दिया है। जिस देश ने अहिंसा,करुणा के आधार पर सम्पूर्ण विश्व में अपनी महत्ता स्थापित की थी , आज उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी है।
आज आधुनिकता के नाम पर विश्व का पर्यावरण दूषित होता जा रहा है। हवाएं जहरीली होती जा रही हैं। जल विषमय होता जा रहा है। वनस्पतियाँ उजडती जा रही हैं। ऐसा लगता है कि सारा पर्यावरण ही मौत के शिकंजे में कसता जा रहा है। पर्यावरण के प्रति हमारी जी जिम्मेदारी थी, मनुष्य उससे विमुख होता जा रहा है। वेद आदि शास्त्रों में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए निर्देश दिए गये हैं। वैदिक-शान्तिपाठ तो पूर्ण रूप से पर्यावरण की सजगता का प्रतिरूप है। शान्तिपाठ के अंतर्गत द्यौ , अन्तरिक्ष एवं पृथिवी की शांति के साथ-साथ जल , औषिधियोँ , वनस्पतियों आदि कि शुद्धि पर बल दिया गया है। ब्रह्म तथा विश्व के देवताओं की शांति के साथ-साथ अपने हृदय में भी शांति स्थापित करने पर बल दिया गया है। इससे अनूठा पर्यावरण की शुद्धता का उदाहरण और कोई दूसरा नहीं हो सकता। पर्यावरण को शुद्ध रखने का मतलब है कि हम स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। तथा आने वाली पीढ़ी के लिए स्वस्थ वातावरण तैयार कर रहे हैं। पर दुर्भाग्यवश आज मनुष्य पर्यावरण को विकृत और असहज बना रहा है।
हमें पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पशु और वनस्पति को सुरक्षित रखना होगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि इनके बीच मनुष्य के सम्बन्धों का निर्धारण करें और हमारी संवेदनशीलता के स्रोत जो अब कुंठित होते जा रहे हैं , उन्हें पुन: प्रवाहित करें। आज विज्ञान ने ऐसे यंत्र और शस्त्र विकसित कर दिए हैं , जिसके माध्यम से प्राणी ने अपने ही सहवर्ती प्राणियों का वध करना शुरू कर दिया है।
अहिसा का झंडा थमने वाले लोग यह न सोचें कि हम मुट्ठी- भर लोग विश्व में कैसे शांति स्थापित कर सकते हैं ? चिंगारी की अपनी भूमिका होती है और वह एक दिन लपट भी बन सकती है। अब विश्व में खून-खराबा काफी हो चुका है, हम नये सिरे से मानव-जाति को जगाएं और परिवर्तन की लहर लायें। अहिंसक कायर होता है , यह तथाकथित मान्यता निराधार है। जो कायर होता है , वह कभी अहिंसक नहीं होता है। जहाँ साहस है, वहां अभय है और अभय की पृष्ठभूमि पर ही अहिंसा, करुणा और मैत्री के स्तम्भ खड़े होते हैं।&&&&&&&&&
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