आहार वही जो तन को पुष्ट और मन को खुश रखे
आहार मनुष्य की आवश्यकता है , पर उसे निर्विवाद होना चाहिए , क्योंकि शाकाहार हमारी संस्कृति का प्रतीक है। मांसाहारियों को चाहिए कि वे जीव हत्या बंद करें। ईश्वर का भजन करें तथा अपने चरित्र ओर गुणों के मालिक बन कर जीवों की रक्षा करें।
आहार मनुष्य की आवश्यकता है , पर उसे निर्विवाद होना चाहिए , क्योंकि शाकाहार हमारी संस्कृति का प्रतीक है। मांसाहारियों को चाहिए कि वे जीव हत्या बंद करें। ईश्वर का भजन करें तथा अपने चरित्र ओर गुणों के मालिक बन कर जीवों की रक्षा करें।
बाईबल में मनुष्य को चिड़ियों और जानवरों का मालिक कहा गया है , लेकिन इस आधार पर यह कहना कि हम उनके मालिक हैं , इसलिए हम उन्हें खाते हैं। यह पशु-पक्षियों के साथ अमानवीयता है। मालिक वह नहीं होता , जो दूसरों के प्राण-हनन करे। मालिक वह है , जो दूसरों के प्राणों की रक्षा करता है। दुनिया में वे ही लोग मालिक कहलाने के अधिकारी है , जो आकाश के पक्षियों और जमीन के जानवरों को अपने समान ही समझते हैं।
आहार-सामग्री को धर्म और नैतिकता से कम और स्वास्थ्य से अधिक जोड़ा जाना चाहिए। लेकिन खाने वाले के साथ धर्म जुड़ा हुवा है , व्यक्ति क्या खाता है और कैसे खाता है ? यह प्रश्न धार्मिक भी है और नैतिक भी।
बाजार में प्रत्येक खाद्य वस्तु मिलती है , लेकिन उसमें धर्म नहीं जुड़ता। धर्म और नैतिकता का प्रश्न वहां उठता है , जब दुकानदार उसका विक्रय करते समय कितनी ईमानदारी एवं कितनी बेईमानी बरतता है। शाकाहार हमारे स्वास्थ्य व नैतिक जीवन दोनों के लिए अनुकूल है। मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार में रोगों के रोकने की अधिक क्षमता है।
मांसाहार के साथ जीव-हिंसा की क्रूरता भी जुडी है, जबकि मनुष्य का स्वभाव क्रूरता नहीं करुणा है। जो व्यक्ति किसी के गले पर छूरी चलते हुवे भी नहीं कांपता वह अनैतिक कार्य करने में कैसे संकोच करेगा। मांसाहार न करने वाला व्यक्ति जीव-हिंसा-जनित क्रूरता से स्वत: ही बच जाता है। शाकाहारी और मांसाहारी जीवों में स्पष्ट भेद होता है। शाकाहारी जीव जीभ से पानी पीते हैं, जबकि मांसाहारी चाटकर । शाकाहारी के दांत और नाखून सपाट होते हैं , जबकि मांसाहारी के नुकीले होते हैं। अत: शाकाहार मांसाहार की तुलना में स्वास्थ्य-प्रद और हितकारी है। शाकाहारी सहज,सरल करुणा मिश्रित मृदु भावों से सम्पन्न होता है। शाकाहार नैसर्गिक-प्राकृतिक एवं स्वास्थ्यकर है। इससे उत्तेजना की नहीं , अपितु आह्लाद की प्राप्ति होती है।&&&&&&
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