ज्ञानी का सत्संग सीप की संगत की तरह है ,जिसमें जल-बूंद को मोती बनाने की ताकत होती है
ज्ञान मनुष्य की आभा है। ज्ञान के अभाव का नाम ही अंधापन है। यह जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति के साथ रहता है। ज्ञान न तो जीवन का अनुज है, न अग्रज। यह तो जीवन के सम है , जीवन का ही सहोदर है। जीवन और ज्ञान का न जन्म होता है और न उसकी मृत्यु होती है। यह जन्म और मृत्यु के पार का ही अस्तित्व है। जो ज्ञात और जीवित है , वह जन्म से भी पूर्व था और पश्चात् भी। जो जन्म-मृत्यु और परिवर्तन की स्थिति पर है , वह ज्ञेय है।
ज्ञान मनुष्य की आभा है। ज्ञान के अभाव का नाम ही अंधापन है। यह जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति के साथ रहता है। ज्ञान न तो जीवन का अनुज है, न अग्रज। यह तो जीवन के सम है , जीवन का ही सहोदर है। जीवन और ज्ञान का न जन्म होता है और न उसकी मृत्यु होती है। यह जन्म और मृत्यु के पार का ही अस्तित्व है। जो ज्ञात और जीवित है , वह जन्म से भी पूर्व था और पश्चात् भी। जो जन्म-मृत्यु और परिवर्तन की स्थिति पर है , वह ज्ञेय है।
ज्ञाता वह है, जो जानता है। ज्ञान तो ज्ञाता और ज्ञेय के बीच घटित होने वाली एक महत्त्वपूर्ण घटना है। ज्ञान वह सेतु है , जो ज्ञाता का ज्ञेय के साथ सम्बन्ध जोड़ता है। ज्ञाता को ज्ञेय रहित होने के लिए आवश्यक है कि वह ज्ञान के साथ सम्बन्ध न रखे। वह अपनी आभा से मात्र ज्ञाता को ही उज्ज्वल करे।
आत्म-साधना के लिए मनुष्य को स्वयं ही पुरुषार्थ करना पड़ेगा। ज्ञानी हमें सहारा दे सकता है, पर अंतत: उस सहारे से भी मुक्त होना पड़ेगा। जीवन-उत्थान के लिए मनुष्य को उन लोगों से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए, जिन्होनें जीवन में उपलब्धियां प्राप्त की हैं। ज्ञानी का सत्संग सीप की संगत की तरह है , जिसमें जल-बूंद को मोती बनाने कि क्षमता होती है।********
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