बुधवार, 1 जून 2011

नमन-गमन

सामान्यतया नमन का अर्थ नमस्कार करने , झुक जाने , नम्रीभूत हो जाने , किसी के चरण-स्पर्श 


करने आदि के अर्थ में प्रयुक्त होता है ।  कोमलता का जागरण हो जाये उसे ही नमन कहा जाता है ।

एक बार ऐसा नमन हो की हमारे जीवन से सभी अवगुण का गमन और सभी कल्मषों का शमन हो जाये ।

' गमन ' शब्द का प्रयोग स्थानान्तरण करने , आने-जाने अथवा विहार करने के अर्थ में प्रयुक्त होता है । आध्यात्मिक दृष्टि से जहाँ से कहीं जाने का नाम ही नहीं लिया जाये , वह ' गमन ' कहलाता है । 

गीता में भी सुख और दुःख के समीकृत भाव को योग की संज्ञा दी गयी है। सच्चा ' गमन ' वही है जहाँ से पुन: वापिस लौटना न हो । नमन के साथ गमन परम तत्व से एकाकार करा देता है और यही परमानन्द की स्थिति है ।  सच्चा नमन गमन की ओर प्रेरित करता है । नमन में जहाँ समर्पण का भाव है , वहां गमन में वास्तविक पूर्ण विश्रांति और मुक्ति का भाव है ।******



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