असत्य के पैर नहीं होते । वह सत्य के सहारे ही चलता है
मूल शब्द से ही ' मूल्य ' का विकास हुवा है । धर्म के मूल दस लक्षण हैं । जिन्हें मनु महाराज ने स्पष्ट करते हुवे कहा है _ ' धृति , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इन्द्रिय-निग्रह , धी: , विद्या , सत्य एवं अक्रोध । ' इन मूल तत्वों से ही मूल्यों का विकास होता है । अपने प्रति अनैतिक एवं प्रतिकूल आचरण पसंद नहीं है । श्रुति में कहा गया है कि _ ' आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत ' । अपने प्रतिकूल व्यवहार को दूसरे के प्रति भी कभी भी नहीं करना चाहिए ।
आचरण की शुद्धता का अत्यधिक महत्त्व होता है । आचरण धर्म-संगत होना चाहिए , धर्म संगत व्यवहार ही समुचित अर्थ के अर्जन में सहायक होता है । असत्य के पैर नहीं होते । वह सत्य के सहारे ही चलता है । सत्य से ही हर व्यक्ति अपना जीवन यापन करना चाहता है स्वार्थ की भावना नहीं , अपितु सर्वार्थ की भावना का उसमें विकास होना चाहिए । ' सर्वेभवन्तु: सुखिन: ' एवं ' वसुधैव कुटुम्बकम ' की स्थति का प्रश्रय लेना आवश्यक है ।
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