गुरुवार, 2 जून 2011

असत्य के पैर नहीं होते


असत्य के पैर नहीं होते । वह सत्य के सहारे ही चलता है 


बहुमूल्य क्या है ? बहुमूल्य पदार्थों की संख्या अत्यंत अल्प होती है ।  कभी भी अलौकिक पदार्थ की ओर हमारा ध्यान आकर्षित नहीं हुवा । पूज्य संत पुरुषों ने कहा है कि इस लोक में सर्वत्र सुंदर हमारी आत्मा ही है । वह ही सबसे अधिक मूल्यवान है । तत्व से अनभिज्ञ जीवों को ऐसा प्रतीत होता है कि शरीर और शरीर से सम्बन्धित पदार्थ ही बहुमूल्य हैं ।

मूल शब्द से ही ' मूल्य ' का विकास हुवा है । धर्म के मूल दस लक्षण हैं । जिन्हें मनु महाराज ने स्पष्ट करते हुवे कहा है _ ' धृति , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इन्द्रिय-निग्रह , धी: , विद्या , सत्य एवं अक्रोध । ' इन मूल तत्वों से ही मूल्यों का विकास होता है ।  अपने प्रति अनैतिक एवं प्रतिकूल आचरण पसंद नहीं है । श्रुति में कहा गया है कि _ ' आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत ' । अपने प्रतिकूल व्यवहार को दूसरे के प्रति भी कभी भी नहीं करना चाहिए ।

आचरण की शुद्धता का अत्यधिक महत्त्व होता है । आचरण धर्म-संगत होना चाहिए , धर्म संगत व्यवहार ही समुचित अर्थ के अर्जन में सहायक होता है । असत्य के पैर नहीं होते । वह सत्य के सहारे ही चलता है । सत्य से ही हर व्यक्ति अपना जीवन यापन करना चाहता है स्वार्थ की भावना नहीं , अपितु सर्वार्थ की भावना का उसमें विकास होना चाहिए । ' सर्वेभवन्तु: सुखिन: ' एवं ' वसुधैव कुटुम्बकम ' की स्थति का प्रश्रय लेना आवश्यक है ।

मूल्यहीनता को ही बहमूल्य मानने वाले स्वार्थवश प्रेरित हो कार्य करते हैं।  स्वार्थवश कार्य करता है , जबकि नैतिक व्यक्ति सर्वार्थ की भावना का प्रश्रय लेता है । नैतिक मूल्यों की स्थापना ही जीवन को बहुमूल्य बना देती है ।




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