हमारा सारा सामर्थ्य उभय मार्गी है . अगर विपरीत हम न कर सके , तो सामर्थ्य है ही नहीं . जैसे किसी आदमी को हम कहें कि तुम ठीक करने के लिए हकदार हो . लेकिन गलत करने कि तुम्हें स्वतन्त्रता नहीं है . तुम्हें मात्र ठीक करने की स्वतन्त्रता है . तो समझो स्वतन्त्रता ख़तम हो गयी . स्वतन्त्रता का अर्थ ही यह है कि गलत करने की भी स्वतन्त्रता हो . तभी ठीक करने की स्वतन्त्रता का कोई अर्थ है .
चेतना स्वतंत्र है . स्वतन्त्रता चेतना का गुण है . स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि दोनों तरफ जाने का उपाय है . हम गलत भी कर सकते हैं . गलत करने की स्थिति में ही ठीक को खोजने की सुविधा है . हर आदमी सोचता है कि मैं सदा स्वस्थ रहूँ और कभी बीमार न पडूँ . लेकिन आपको पता नहीं कि आप जो चाह रहे हैं वह नासमझी से भरा पड़ा है . अगर आप कभी बीमार नहीं होंगे , तो आपको अपने स्वस्थ होने का पता ही नहीं लगेगा . अगर आप दुखी नहीं होंगे , तो सुखी होने का अहसास कैसे कर पाएंगे . अगर आपको केवल सत्य ही मिला होता और असत्य की तरफ जाने का कोई मार्ग ही नहीं होता , तो सत्य मूल्यहीन ही हो जाता . उसका मूल्य आपको कभी भी पता नहीं चलता . सत्य का मूल्य इसलिए है कि क्योंकि उसे हम उसे खो सकते हैं .
अगर परमात्मा ? ऐसा हो जिसे आप खो ही नहीं सकें , तो आप परमात्मा से ऊब जायेंगे . परमात्मा से ऊबने का कोई उपाय ही नहीं है . क्योंकि पल में आप उसे खो सकते हैं . और जिस दिन आप संसार से ऊब जाएँ , उसी क्षण आप परमात्मा में लीन हो सकते हैं . जो भी जीवन में है , वह अकारण नहीं है . दुःख है , संसार है , बंधन है और ये सब अकारण नहीं हैं . इनकी उपादेयता है . यह कि ये सब अपने से विपरीत की ओर इशारा करते हैं .
आपकी चेतना बंध सकती है , क्योंकि आपकी चेतना स्वतंत्र हो सकती है . ओर यह आपके हाथ में है . जब मैं कहता हूँ कि आपके हाथ में है तप आपको ऐसा लगता है कि मैं इसी समय स्वतंत्र क्यों नहीं हो जाता ? लेकिन समस्या यह है कि आप सोच तो स्वतंत्र होने के बारे में रहे हैं और सरे कार्य-कलाप बंधे रहने के लिए कर रहे हैं .
एक मित्र मेरे पास आये . बोले कि मन बहुत अशांत है . शांति का कोई उपाय बताएं . मैंने उनसे पूछा , पहले यह बताएं कि आपका मन अशांत क्यों है ? ऐसा न हो कि मैं आपकी शांति का उपाय बताऊँ और आप अशांति का उपाय कए चले जाएँ . तब तो कोई समाधान नहीं निकलेगा , बल्कि अशांति और बढ़ती चली जाएगी . ऐसी हालत हो जाएगी कि एक आदमी कार में एक्सीलेटर भी दबा रहा है और ब्रेक भी लगया जा रहा है . कार की तकनीक ऐसी है कि एक ही पैर से ब्रेक ब्रेक व एक्सीलेटर दबाया जाता है . आप चाहें , तो दोनों कार्य एक साथ भी कर सकते हैं कि ब्रेक व एक्सीलेटर दबा दें . बेशक ऐसी स्थिति में बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी . इसलिए अशांति को रोकने वाला ब्रेक दबाना है , तो पहले अशांति बढ़ाने वाले एक्सीलेटर से पैर तो हटाना ही पड़ेगा . __ ओशो *****