सोमवार, 15 अगस्त 2011

गायत्री रहस्य

गायत्री रहस्य


                                         


इस ' भू: , भुव: , स्व: ' का ही संक्षिप्त रूप ' ॐ ' है . ध्वनि-मात्र का आदि मूल ' अ ' और स्थान कंठ है . मध्य ' उ ' और स्थान मुख का मध्य है . ' म ' सब संगीतमयी 

ध्वनियों का अंत है और सत्यत: ध्वनिमात्र का अंत है . क्योंकि यही एक अक्षर है जो मुख बंद करने पर भी बोला जाता है और इसका स्थान ओष्ठ है . मकार ही एक 

ऐसा अक्षर है जो समाप्ति का सूचक है अर्थात परमसुख का सूचक है . इसलिए यह ' स्व: ' का अर्थात परम सुख का सूचक है . इनमें से एक-एक अंश  का 
ही अभ्यास करें तो मनुष्य का पूर्ण परिपाक नहीं होगा . पूर्ण परिपाक करने वाला तो ' भूर्भव: स्व: ' का समन्वय है . इसलिए उस समन्वय को ' भर्ग: ' अर्थात 

ठीक परिपाक करने वाला कहा गया है . _
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