गुरुवार, 11 अगस्त 2011

धन कमाइए पर उद्देश्य कुछ और हो

धन कमाइए पर उद्देश्य कुछ और हो 

                                                    

संसार में उचित जीवन यापन के लिए धन अनिवार्य है . धन  के आभाव में मनुष्य के सभी गुण निरर्थक से लगते हैं और समाज में जो सम्मान मिलना चाहिए वह भी नहीं मिल पाता . दरिद्रता का पहला अभिप्राय यह है की मनुष्य सम्पन्न व्यक्तियों में पहुंचकर संकुचित-सा अनुभव करता है . प्रत्येक समय हीनता के अनुभव के कारण उस व्यक्ति का तेज नष्ट हो जाता है . निस्तेज व्यक्ति को कोई भी और कभी भी दुत्कार देता है . इस प्रकार तिरस्कृत व्यक्ति उदास रहने लगता है और उदासीन व्यक्ति को धीरे-धीरे शोक घेर लेता है और शोकातुर व्यक्ति की बुद्धि ठीक से कार्य नहीं करती . परिणामत: बुद्धि-हीन व्यक्ति का विनाश हो जाता है . इसलिए निर्धन होना सब आपत्तियों का घर है .


कविवर कालिदास ने कहा है  _दरिद्रता ऐसा दुर्गुण है जो सभी गुणों को नष्ट कर देता है . वैदिक प्रार्थनाओं में कहा गया है _ ' वयं स्याम पतयो रयीणाम ' अर्थात हमारे समाज में सभी मनुष्य ऐश्वर्यशाली हों . वेद संसार में मानव-जीवन को सम्पन्न , सुखी और उत्तम गुण - कर्मों का केंद्र बनाने की प्रेरणा देता है . वेद के अनुसार धन संसार में बहुत कुछ है , किन्तु सबकुछ नहीं है . धन के ऊपर धर्म का न्यन्त्रण रहना चाहिए . जहाँ यह अंकुश नहीं रहता , वहां कभी न बुझने वाली विलासिता की आग जल उठती है .


धन को अपेक्षित महत्त्व तो देना ही चाहिए . इसमें दो बातों की सावधानी आवश्यक है _ पहली अर्जन - प्रक्रिया और दूसरी उपभोग की मर्यादा . धन को परिश्रम पूर्वक कमाना चाहिए , धन संग्रह का नाम नहीं अपितु उसके समुचित वितरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए . ' तेन त्यक्तेन भुंजीथा : ' का सिद्धांत अपनाना चाहिए . धर्म , अर्थ . काम और मोक्ष के अनुसार क्रमश: धर्मानुसार अर्थ का उपार्जन और उस अर्थ को सतकार्यों में लगाना ही मोक्ष का द्वार हो सकता है .   ****** साभार _अखंड ज्योति 
   
                                                               
        


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