मन बड़ा ही चंचल एवं संवेदनशील होता है .
मन में उठने वाला चिन्तन यदि नकारात्मक है तो व्यक्ति उदास और दुखी हो जाता है और यदि वह सकारात्मक है तो व्यक्ति का मन इन घटनाओं से जीवन का अनुभव ग्रहण करता है और जीवन के अग्रिम मार्ग को प्रशस्त करता है .
मन जितना संवेदनशील होता है , उतनी ही दूरी की तरंगों को महसूस करता है . अधिकतर लोगों का मन अपने परिजनों से इतना जुड़ा होता है कि उनके सुख-दुःख , बीमारी के समय कष्ट-पीड़ा को वे जान जाते हैं .
. यदि मन शांत , स्थिर , जाग्रत एवं संवेदनशील है , तब निश्चित तौर पर इन घटनाओं का पूर्वाभास किया जाता है . इसी के आधार पर अनेक व्यक्तियों ने भविष्य - वाणी की हैं और वे सत्य प्रमाणित हुयी हैं . ध्यानी , योगी व्यक्ति इन घटनाओं को अपने दिव्य चक्षुओं से देख भी लेते हैं और आवश्यक प्रयोग पीड़ा-निवारण एवं नव-सृजन हेतु करते हैं .
यदि मन कमजोर है तो जिन्दगी के कठिन झंझावातों से जूझ पाना आसन नहीं होता ;जल्दी निराशा होती है और अवसाद घेर लेता है .
ऐसी अवस्था में जरूरत है मन को विकसित करने की , उसकी प्रतिरोधक क्षमता ( इम्यूनिटी ) बढ़ाने की , ताकि किसी भी कठिन या दुखद परिस्थिति में वह टूटकर गिरे नहीं .
मन की क्षमता और सामर्थ्य बढ़ाने के लिए कुछ अभ्यास किए जा सकते हैं ; जैसे _ नियमित स्वाध्याय , सत्संग , स्व - संकेत _ अर्थात अच्छे विचारों के पूरे विश्वास के साथ दोहराना अपने सामर्थ्य को सक्षमता के पूर्ण बिंदु तक स्व -चिन्तन द्वारा प्रयास करना , पौष्टिक आहार , पर्याप्त श्रम एवं उपासना .
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