गुरुवार, 22 सितंबर 2011

लगन पैदा कर फिर देख क्या मिलता है ?

लगन पैदा कर फिर देख क्या मिलता है ?


एक जिज्ञासु अपने गुरु के पास गया . ईश्वर - प्राप्ति की उसे बहुत लगन थी . गुरु मुस्कुरा दिया , कुछ बोले नहीं . फिर दो दिन छोड़कर एवं बाद में हर दिन वह आने लगा . गुरूजी मुस्कुरा कर टाल देते . एक दिन धूप तेज थी . गर्मी के मारे व्यग्रता थी . उसी समय वह युवक आया और फिर वाही प्रश्न पूछा . गुरूजी पहली बार बोले _ ' चलो नदी में स्नान करने चलते हैं . '

दोनों नदी में कूद पड़े . अभी युवक ने गोता लगाया ही था कि गुरूजी ने उसे दबोच लिया . वे अच्छी मजबूत कद-काठी के थे . बड़ी देर तक वे उसे दबाये रहे . काफी देर छटपटाने के बाद छोड़ा तो वह पानी के ऊपर निकला और शिकायत करने लगा कि उन्होंने ऐसा व्यवहार क्यों किया ? गुरूजी ने पूछा _ ' जब तक तू पानी में डूबा था , तुझे सबसे प्रिय क्या लग रहा था ? ' युवक ने गुस्से में उत्तर दिया _ ' महाराज साँस लेने के लिए हवा . ' गुरूजी _ ' उस समय तू जितना व्यग्र था , उतना क्या अभी भी है ? यदि है तो ईश्वर प्राप्त कर लेगा . यदि नहीं तो जा . अपनी ओर से ईश्वर - प्राप्ति के लिए वही लगन पैदा कर . तभी ईश्वर के दर्शन हो पाएंगे . नहीं तो रोज आकर इसी तरह मुझे हैरान करता रहेगा . ' युवक चल पड़ा स्वयं को बनाने के लिए और अपनी पात्रता को विकसित करने के लिए .

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