ब्रह्मदर्शन होते ही मनुष्य चुप हो जाता है . जब तक दर्शन न हो तब तक विचार होता रहता है . घी जब तक पक न जाये तभी तक आवाज करता है . पके घी से शब्द नहीं निकलता . उसी तरह समाधिस्थ पुरुष जब लोक-शिक्षण के लिए नीचे उतरता है तो तभी बोलता है .
जब तक मधुमक्खी फूल पर नहीं बैठती तभी तक भनभनाती है . फूल पर बैठकर मधु पीना शुरू करते ही चुप हो जाती है .
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