सोमवार, 19 सितंबर 2011

नियमित उपासना

नियमित उपासना
                                               



ऋषि विश्वामित्र तब ब्रह्मर्षि नहीं बने थे . तपस्या कर रहे थे एवं कठोर साधना में रत थे . श्रेष्ठ तपस्वी -योगी के भी कुछ संस्कार ऐसे रह जाते हैं जो कहीं-न - कहीं अवरोध बन जाते हैं . इंद्र ने मेनका को भेजा . ऋषि की तपस्थली के चारों ओर वसंत छा गया . वे मेनका के सौन्दर्य के समक्ष पराजित हो गये . समय बीता और एक बेटी ने जन्म लिया .

एक सबेरे थोडा जल्दी उठ गये थे . पत्नी मेनका भी साथ उठी . अचानक सूर्योदय देखा . बोले __ ' अरे ! ब्राह्म मुहूर्त्त आ गया और हमने अभी संध्या भी नहीं की . यह तो हमारा नियम था . '  मेनका बोली _  ' नाथ ! आपकी कितनी संध्याएँ निकल गयीं , आपको पता है ? तीन वर्ष बीत गये . दो वर्ष की तो बेटी हो गयी है . '

बोध-प्रबोध हुवा . तुरंत सब छोड़कर पुन: सारा क्रम प्रारम्भ किया . जीवात्मा को होश ही नहीं रहता . कोई - न - कोई संस्कार , भले ही वह एक रह गया हो , अवरोध बन ही जाता है . चित्त-शुद्धि , श्रद्धा के सम्बल एवं नियमित उपासना से उस अवरोध को हटाया भी जा सकता है .

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