रविवार, 27 मार्च 2011

साम्यावस्था प्रकृति , अन्यथा विकृति


साम्यावस्था प्रकृति , अन्यथा विकृति 





यह प्रकृति त्रिगुण सत्ता से युक्त है । सत , रज और तम  का समन्वित रूप ही यह प्रकृति है । परिणामत: तीन का बड़ा ही महत्त्व है । संसार-मोक्ष , सुख-दुःख , जीवन-मरण , रुग्णता-निरोगता आदि सभी तीन पर ही अवलम्बित हैं ।ये आत्मा की स्वाभाविक शक्तियाँ हैं और स्वभावभूत गुण हैं । सम्यकदर्शन के प्रकट होते ही सम्यकज्ञान तो जागृत होता ही है परन्तु सम्यकचारित्र का भी उद्भव प्रारम्भ हो जाता है । 

तीन सरिताएं जहाँ आकर एक साथ मिल जाती हैं , वह स्थान  लोक में पूज्य माना जाता है । उसे त्रिवेणी के नाम से पुकारा जाता है । उस स्थान पर सननन करना पुण्य कार्य माना जाता है । सामान्यत: यह धारणा है कि त्रिवेणी में स्नान करने से उसके सब पाप धुल जाते हैं । और ऐसी ही परम पावनी त्रिवेणी हमारे अंतर में भी सतत विद्यमान है , जिसके निर्मल जल का पान हमें अमरत्व की तरफ ले जाता है ।


मृण्मय जगत से चिन्मय जगत में पहुंचना ही अमरत्व है । अशांति से शांति की प्राप्ति होती है । इसमें स्नान करने से जन्म-जन्म के संचित पाप प्रक्षालित हो जाते हैं । इसमें डुबकी लगाने से असंख्य गुण रत्नों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है । इसका जल इतना स्वादिष्ट है कि एक बूंद भी एक बार प्राप्त हो जाने पर न जाने कितने जन्मों के कड़वे पदार्थों के सेवन से बिगड़ा हुवा जिह्वा का स्वाद भी मिष्ट हो जाता है । इस रस की रसानुभूति सर्व दुखों को विस्मृत ही नहीं,अपितु समाप्तही कर देती है ।*******





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