सोमवार, 28 मार्च 2011

अपने पैरों पर कुल्हाड़ी का प्रहार

अपने पैरों पर कुल्हाड़ी का प्रहार





कहीं मान , मर्यादा , सम्मान , स्वाभिमान की ग्रन्थियां बाधक बन जाती हैं तो कहीं ईर्ष्या , द्वेष , वैमनस्य , मात्सर्य आदि भावों की ग्रन्थियां हमारा मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं । कहीं लोभ , क्षोभ के शूल हमारे मन में चुभन उत्पन्न करते हैं तो कहीं स्वाभिमान की आढ़ में पलने वाले अभिमान , अहंकार या अनेक मदों की मदहोशी हमें मदमस्त कर देती है । परिणामत: हमें सम्यक-असम्यक पथ का ज्ञान होना ही दुष्कर हो जाता है । यही कारण है हम अपने पथ पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं ।


हम अनेक उलझनों को जन्म देकर स्वयं अपने हाथ से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी का प्रहार कर रहे हैं । इस संसार को मात्र द्रष्टा भाव से ही देखना चाहिए । अपने को निर्वैर और विराग बनाने का प्रयास करना चाहिए ।  उलझनों के चक्र -व्यूह में फंसकर उद्धार करना कठिन होगा । अत: इन अगणित के मध्य रहकर भी एक को देखने का प्रयास करना चाहिए और तभी कल्याण संभव है ।*******

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