शनिवार, 26 मार्च 2011

चिंता जलाकर ख़ाक कर देती है

चिंता जलाकर ख़ाक कर देती है 


 
चिंता चिता सदृश है । बिंदु मात्र का अंतर होते हुवे भी दोनों के फल में कितना अंतर है ? एक जीवित तन और मन को जलाती है और दूसरी चिता मृत तन को ध्वस्त करती है । अर्थात चिंता चिता से भी अधिक बलशाली है।  

चिंतन इन दोनों से परे है , वह जन्म , जरा-मृत्यु जैसे महान रोगों को जला देता है , कर्म रूपी पर्वतों को भेद देता है । कल्मष , कषाय को प्रक्षालित कर देता है तथा गहनता की ओर ले जाता है । लोक-व्यवहार से अध्यात्म पर्यन्त स्व व पर पदार्थों के सम्बन्ध किया गया गहन चिंतन गूढ़ रहस्यों को अन्वेषित करता है । सागर की गहराई में जाने पर मोती मिलते हैं ओर उसी प्रकार चिन्तन-सागर में गोते लगाने पर स्वानुभव रूप रत्नों की प्राप्ति होती है ।


विचार सही अर्थों में वही प्रेरणादायक होता है जिसके पीछे आचरण की शक्ति हो । दर्शन और विचार में यही मौलिक अंतर है । दर्शन जहाँ अनुभूति की अभिव्यक्ति है , वहां विचार बुद्धि-विलास मात्र भी हो सकता है ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&



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