स्वतंत्रता--दिवस पर हम गौरव से स्वतंत्रता की चर्चा करते हैं। गणतंत्र-दिवस पर देश के संविधान पर चिंतन करते हैं। यदि हम स्वतंत्र हैं और हमें हमारे द्वारा निर्मित संविधान भी प्राप्त है तो हम चुप क्यों हैं ? हमें इतने से संतुष्ट नहीं होना चाहिए ; अब आत्मिक स्वातंत्र्य पर संघर्ष होना चाहिए। संघर्ष यह लाठी, तलवार , बंदूक शस्त्रों से नहीं ; अपितु कर्त्तव्य ,व्रत , अध्यात्म और शास्त्रों को हाथ में लेकर करना चाहिए। एक तरफ हमारी शक्ति दिनचर्या के सुधार की हो तो दूसरी ओर आत्मविकास की होनी चाहिए। शस्त्र चलाना भले ही सीखें , पर शास्त्रों के अध्ययन में बिलकुल भी पीछे न रहें। कल हमारे अनेक भाईयों ने स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर किये थे ; आज हम धर्म , सदाचार , सेवा , व्यसन-त्याग के लिए प्राण नहीं अपितु स्वयं को समर्पित करें। इस महान देश में केवल महान उत्कृष्टता के लिए प्राण धारण करें।********************
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