गुरुवार, 4 नवंबर 2010

सत्य एक अनुभूति है ; यह संज्ञा नहीं अपितु एक क्रिया है

सत्य एक अनुभूति है ; यह संज्ञा नहीं अपितु एक क्रिया है 




सत्य का प्रयोग मात्र वचन व्यवहार में नहीं , अपितु आचरण में होना चाहिए। सत्य वहां जीवंत हो जाता है , जहाँ जीवन बाहर और भीतर एकरूप हो जाता है । जो लोग झूठ के हमदर्द होते हैं , वे कहते हैं कि सत्य बहुत कटु होता है , किसी को हजम नहीं हो सकता । वास्तव में सत्य कभी कटु नहीं होता। अगर हमने सत्य को कटु की संज्ञा दी तो मधुर किसे कहेंगे ? सत्य को सही ढ़ंग से अभिव्यक्त करने का लहजा अगर पास में हो तो सत्य का माधुर्य मिश्री जैसा ही होगा ।


किसी की कमी को प्रेम से उसी के मुंह पर बताना सत्य की रक्षा है , वहीँ पीठ -पीछे उसका दुष्प्रचार करना सत्य का गला घोंटना है , उसी का नाम निंदा है । सत्य को खोज करने की आवश्यकता नहीं है , क्योंकि सत्य कोई वस्तु नहीं है , वह तो प्रतीति है , एक अनुभूति है । यह संज्ञा नहीं है , अपितु यह एक क्रिया है। नेकी का आचरण और बुराई से सम्बन्ध - विच्छेद , यही सत्य का आचरण है ।

हम अन्धानुकरण न करें , अपितु अपने जीवन की राह स्वयं ही बनाएं। इस मार्ग में न तो किसी से तुलना होगी , न किसी से प्रतिस्पर्धा , जो कुछ होगा हमारा मौलिक होगा । सत्य में तप , संयम और समस्त गुणों का वास है । जैसे सागर में सभी नदियाँ गिर जाती हैं , वैसे सत्य में ही समस्त गुण समा जाते हैं । सत्य न केवल परम आचरण है , अपितु धर्म का पर्याय भी है ।


संसार में सच्चाई की सदैव ही परीक्षा ली गयी । ऐसा नही है कि सत्य के कारण केवल राजा हरिश्चन्द्र को ही आपदाओं का सामना करना पड़ा हो ; राम , कृष्ण , महावीर , बुद्ध , ईसा , सुकरात , दयानन्द ,गाँधी आदि इन सभी को आपदाएं झेलनी पड़ी थीं । क्योंकि यह संसार अपने जीवन मात्र से सत्य की मोहर लगाकर अंतत: झूठ का ही साथ देता है । लेकिन झूठ कुछ दिन के लिए भले ही सफल प्रतीत हो , पर अंतत: विजय सत्य की ही होती है । चाहे रावण की असुर शक्ति हो या कंस की , जब-जब भी सत्य का सामना होगा तो झूठ हारेगा ही । कोई राम से हारेगा तो कोई कृष्ण से ।++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++


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