मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मन और शरीर की ट्यूनिंग है ध्यान

मन और शरीर की ट्यूनिंग है ध्यान 



ध्यान जीवन से पलायन नहीं है, अपितु जीवन को समग्रता से जीने का तरीका है। तनाव-मुक्त और स्वस्थ मन ही जीवन का सुखद आयाम है। मनुष को चाहिए कि वह अपनी जागरूकता को सब ओर से वापिस खींच कर उसको विश्राम करने दे ताकि साक्षी-भाव उत्पन्न हो सके


संसार की गतिविधियों को देखकर स्वयं को निर्लिप्त रखना यही साक्षी-भाव की पृष्ठ-भूमि है। हम वृक्ष को देखें या नदी को, आकाश को देखें या खेलते हुवे बच्चे को , यह गौण है कि हम क्या देख रहे हैं ? विचारणीय यह है कि हम उससे कितने प्रभावित हो रहे हैं। दृश्य कभी महत्त्वपूर्ण नहीं होते , महत्त्वपूर्ण होता है द्रष्टा। हम जो भी कार्य करें , होश पूर्वक करें। सजगता से किया गया प्रत्येक कार्य उपलब्धि के निकटतम पहुंच सकता है। हम होश पूर्वक जो भी करेंगे , वही ध्यान होगा।


प्रश्न कृत्य का नही अपितु कर्त्ता का है। घूमन हो या बैठना , दुकान चलाना हो या खाना-बनाना आदि हमारा कृत्य ध्यान हो सकता है। अपितु उसे जागरूकता पूर्वक किया जाए। जीवन का वह प्रत्येक कृत्य ध्यान है, जिसमें मूर्च्छा न हो। होश की पहली सीढ़ी अपने विचारों के प्रति जागरूक होना है। प्रत्येक क्रिया और मुद्रा के प्रति सजग होने की कोशिश करनी चाहिए। प्रारम्भ में कुछ शिथिलता अनुभूत होगी , लेकिन धीरे-धीरे जीवन में एक गहन शांति प्राप्त होगी , एक सूक्ष्म संगीत उत्पन्न होगा, फिर विचार अपने आप एक निश्च्चित दिशा में चल पड़ेंगे।



जब शरीर ओर मन दोनों शांत हो जाते हैं, तो जीवन में एक लयबद्धता स्थिर हो जाती है। फिर मनुष्य भावनाओं ,आवेगों ओर मन:स्थतियों के प्रति सजग हो जाता है। परिणामत: मन ओर शरीर अलग-अलग दिशाओं में नहीं दौड़ते । जब शरीर ओर मन एक ही स्थान पर ही स्थिर हो जाते हैं ओर व्यक्ति साक्षी-भाव में जीने लगता है तो परम चैतन्य को प्राप्त करता है। यही जीवन का बुद्धत्व ओर शुद्धत्व होता है। शरीर सुख की अनुभूति करता है , ह्रदय आह्लाद की अनुभूति करता है , अपितु ध्यानस्थ आत्मा आनन्द की अनुभूति 
करता है। यह एक ऐसा आनन्द है , जिसके सामने संसार के सभी आनन्द निस्सार हैं।****************



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