शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

अनासक्त भाव से किया जाने वाले कार्य

अनासक्त भाव से किया जाने वाले कार्य 



भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म असत्य के विसर्जन और सत्य की विजय तथा स्थापना का प्रतीक है। श्रीकृष्ण के गीता -रूप में उनके दिव्य संदेश आज सरे विश्व का मार्ग-दर्शन कर रहे हैं। यदि गीता को युगीन सन्दर्भों में वैज्ञानिक तर्कों से पेश किया जाए , तो अपराध से भरी दुनिया में बहुत कुछ सुधार लाने की सम्भावना है।

पाश्चात्य विद्वानों की यह मान्यता निराधार है कि श्रीकृष्ण युद्ध के प्रेरक थे। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध को लड़ने की प्रेरणा नहीं दी थी। उन्होंने युद्ध से पूर्व वे सारे प्रयास किये, जिनसे युद्ध रोका जा सकता था। युद्ध-क्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फिसलने से रोका था और ऐसा न किया जाता तो अहिंसा के नाम पर कायरता हमेशा के लिए घर कर जाती। नर-संहार को रोकने के लिए ही अपनी युवावस्था में श्रीकृष्ण ने युद्ध-भूमि को त्याग करना उचित समझा , भले ही लोगों ने उन्हें ' रणछोड़दास ' कहा।



श्रीकृष्ण बाल्यकाल से ही अनन्य शक्ति के भंडार थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही अनेक असुरों का संहार किया। वे एक सामान्य मनुष्य के रूप में जन्मे और सामान्य मनुष्य के रूप में ही मृत्यु को प्राप्त हुवे। लेकिन उनका सम्पूर्ण जीवन भगवत-स्वरूप था। वे सब के साथ इतने घुले-मिले थे कि जन-जन के प्यारे हो गये। श्रीकृष्ण की अलौकिकता के विषय में सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये , किन्तु जितना उनकी लौकिकता ने जन-मानस को प्रभावित किया , उतना अलौकिकता ने नहीं। श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन ही प्रेममय था। प्रकृति के हर तत्त्व से ही उन्हें प्रेम था। उनका मुकुट हीरों का नहीं , मोर पंख का था। गले की माला वन-तुलसी की थी और बांसुरी कि लय पशु-पक्षियों को सामान्य-जन से जोड़ने के लिए थी।


कर्म-योग का अर्थ मात्र क्रिया-कलाप नहीं , अपितु अनासक्त भाव से किया जाने वाले कार्य का सम्पादन है। निष्काम योगी वह है , जो कर्म तो करता है , पर फल की चाह नहीं करता।**********



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