शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

मन्त्र है मन का त्राण .......

मन्त्र है मन का त्राण ___ चैतन्यता 





मन्त्र का उपयोग मन के नियंत्रण के लिए है। मन्त्रों से जहाँ वैचारिक भटकाव कम होता है, वहां मन्त्र के सिद्ध होने पर मन-वांछित प्राप्त होता है। संसार के जितने भी मन्त्र हैं , उनमें किसी व्यक्ति-विशेष या देव-विशेष को प्रणाम किया गया है, लेकिन यह मन्त्र-शक्ति को प्रणाम करवाता है ; उनको जिन्होंने मंजिल को प्राप्त किया है।

मन्त्र न केवल मन को एकाग्र करता है , अपितु विद्युत् प्रवाह का संचार भी करता है। हर कम्पन और हर साँस में अगर मन्त्र समाहित हो जाए चैतन्य दीप शीघ्र प्रज्वलित हो सकता है। मन्त्र-जाप में नमन का भाव रहता है , साथ ही आभा-मंडल को विस्तृत करने की शक्ति भी होती है।

जैन-धर्म में नवकार मन्त्र द्वारा विभिन्न रूप में स्तुति की गयी है। इस नवकार मन्त्र का इसलिए प्रतिफल प्राप्त नहीं होता, क्योंकि लोग रते-रटाये तोते की तरह उसका जाप कर लेते हैं। कोई भी मन्त्र जब तक अंतर -धमनियों में अनुगुंजित नहीं होता , तब तक रोम-रोम में मन्त्र-शक्ति जागृत नहीं हो सकती ।

नवकार मन्त्र के प्रथम और द्वितीय पद अरिहंत और सिद्ध निर्वाण के प्रतीक हैं। अरिहंत वह है , जिसने अपनी ओर से शत्रुओं का समापन कर दिया है। वह मैत्री और प्रेम के भाव को विस्तारित कर देता है। अरिहंत न केवल अपनी ज्योति जलाते हैं , अपितु लाखों-लाख दीपकों में ज्योति का प्राण फूंकते हैं।

हम मात्र मन्त्रों का जाप ही न करें , अपितु उनके दिव्य-गुणों एवं उनके रहस्यों को भी पहचानने की कोशिश करें। जिस आराध्य का जाप किया जा रहा है , उसके दिव्य स्वरूप एवं गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करना मन्त्र की शक्ति को और अधिक विस्तारित करना है।^^^^^^^^^^^^ ^^^^^^^^^^^^^^^^^^ 



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