शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

मोल करो तलवार का

मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान 


हमारी दृष्टि जैसी होती है , उसी प्रकार का पदार्थ हमें दिखाई देता है। अगर हमारी दृष्टि दुर्गुण पर , रूप पर, पद पर , शरीर पर है ; तब हम उसी को ग्रहण करेंगे , गुणों को ग्रहण नहीं करेंगे। संसार में गुण ही ऐसी वस्तु है , जो सभी चराचर पदार्थों में विद्यमान है। यदि हम गुण ग्रहण करना चाहते हैं , तो सभी पदार्थों से गुण ग्रहण कर सकते हैं। गुण-ग्रहण करने में कभी भी छोटे-बड़े का भेद नहीं करना चाहिए। अच्छे गुण जिसमें दिखें , बस उसे ग्रहण कर अपने जीवन को उज्ज्वल बनाना चाहिए।


एक राजा का एक सुंदर एवं गुणवान पुत्र था। वह हमेशा गरीबों और भिखारियों के साथ मित्रता का व्यवहार करता था। राजा ने बहुत कोशिश की कि पुत्र गरीबों से और भिखारियों से दूर रहे, पर पिता की बात का पुत्र पर कोई असर नहीं हुवा। अन्ततोगत्वा पिता को पुत्र पर क्रोध आ गया। और उन्होंने पुत्र को डांटते हुवे कहा _ ' मूर्ख ! तुझे शर्म नहीं आती राजा का पुत्र होकर गरीबों एवं भिखारियों से दोस्ती करता है। और अपने खानदान की इज्जत को मिट्टी में मिलाता है। अरे ! कमबख्त तू क्यों मेरे घर में पैदा हुवा ? किसी गरीब भिखारी के घर में पैदा होता तो अच्छा था। ले जाओ इसे मेरी नजरों के सामने से और चढ़ा दो फांसी।'


पुत्र ने बड़े विनम्र भाव से कहा _ ' पिताश्री मैं फांसी पर चड़ने के लिए तैयार हूँ, पर मुझे दो दिन का समय दीजिए। फिर मुझे फांसी पर चढ़वा दीजिएगा। ' राजा पुत्र की बात मान गया। पुत्र घर से तुरंत बाहर चला गया। और कहीं जाकर उसने तीन पेटियां तैयार करवायीं। इनमें एक सोने की , एक चांदी की और एक लकड़ी की थी। पुत्र तीनों पेटियां लेकर महल की ओर चल पड़ा। पिता के सम्मुख पहुंचकर उसने पिता से कहा _' दो दिन की अवधि एक घंटे के बाद समाप्त होने वाली है। क्या एक घंटे के भीतर मेरे प्रश्नों का समाधान करेंगे ? ' पिताश्री ने कहा _ ' हाँ करूंगा '।


पुत्र ने कहा _ ' पिताश्री ! मैं तीन पेटी लाया हूँ। केवल आपको इतना ही बताना है कि इसमें से सबसे सुंदर पेटी कौन सी है ? ' पुत्र के आदेश से तीनों पेटियां दरबार में उपस्थित कर दी गयीं। राजा और दरबारियों ने जैसे ही तीनों को देखा , तुरंत ही वे बोल पड़े कि सोने की पेटी सबसे अच्छी है और लकड़ी की पेटी सबसे खराब है। उसी क्षण पुत्र ने तीनों पेटी खोल दीं। सोने की पेटी में जानवर की हड्डियाँ पड़ी थीं। चांदी की पेटी में कंकड़-पत्थर भरे थे और लकड़ी की पेटी में हीरे-जवाहरात भरे पड़े थे।



पुत्र ने कहा _ ' पिताश्री ! कदापि आप ऊपर की चमक-दमक को देखकर भ्रम में पड़ गये थे। हीरा कोयले की खदान में ही मिलता है। कमल कीचड़ में ही खिलता है। मोर देखने में सुंदर होता है , पर भक्षण सांप ही करता है। बाण सीधा होता है , पर प्राण-घातक होता है। इसलिए पिताश्री मनुष्य को आकृति से नहीं पहचानना नहीं चाहिए और अमीर-गरीब , ऊंच-नीच आदि का भेद मिटाकर गुणवानों के साथ एवं सज्जन पुरुषों के साथ अपना समय व्यतीत करना चाहिए। भले ही दरिद्र हो। '******************


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