शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

कमल सा हो संन्यासी



कमल सा हो संन्यासी 


संन्यास मृत्यु विजय का अभियान है । जिसने मृत्यु की पदचाप सुनी , उसी के संन्यास पथ पर पद-न्यास हो सकते हैं । मूल्यवत्ता गृहस्थ -आश्रम या संन्यास-आश्रम की नहीं है , अपितु आत्म-दृष्टि को जागृत करना ही संसार में रहते हुवे संसार से परे रहना है। संसार में संन्यासी वह है जो कीचड़ में कमलवत निर्लिप्त है। किस्सी की प्रेरणा से प्रभावित होकर लिया गया नियम कभी भी टूट सकता है, लेकिन यह नियम कैसे टूटेगा जो सत्य से साक्षात्कार करने के पश्चात ग्रहण किया गया है।

बाहर के संसार का त्याग करना तो सरल-सहज है। लेकिन भीतर का संसार व्यक्ति की त्याग-भावना को सदैव चुनौती देता रहता है और जब-तब व्यक्ति को कुमार्ग पर चलने के लिए उकसाता रहता है । हिमालय के शीतल वातावरण में रहने वाले संन्यासी में भी क्रोध और कषाय की चिंगारी देखी जा सकती है।

कुछ गृहस्थ भी ऐसे होते हैं , जो आत्म - साधना के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करते हैं। उनकी प्रज्ञा भले ही जागृत नहीं हुयी हो , लेकिन वे अन्तश्चेतना द्वारा मंजिल को हासिल कर लेते हैं। जब भी जीवन में वैराग्य की भावना पनप जाए तभी व्यक्ति को जीवन-शुद्धि के लिए अपने कदम बढ़ा देने चाहिएं। दर्शन , ज्ञान और चरित्र _ इन तीनों की समवेत साधना से ही संन्यास और दीक्षा की क्रांति जीवन में घटित हो सकती है।%%%%%%




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