बुधवार, 17 नवंबर 2010

गुलाम बनो पर अपने नहीं

 फूलों की सेज


स्पर्श-इन्द्रिय से हमें हल्का , भारी , रूखा , कड़ा , चिकना , ठंडा , गर्म एवं नर्म इन आठ बातों का ज्ञान होता है। जैसे रूई हल्की , बर्फ ठंडा , अग्नि गर्म , लोहा भारी , रेत रूखी , घी-तेल चिकना , पत्थर कड़ा और रबर नर्म यह सब छूने से ज्ञात होता है। जिससे छूकर आठ प्रकार के स्पर्श का ज्ञान होता है।




इस सन्दर्भ में एक प्रमुख कथा है। एक राजा स्पर्श इन्द्रीय का गुलाम और शरीर का दास था। वह चलता था तो सडकों पर मखमल की कालीनें बिछ्वाता था। सोता तो पहले फूलों की शैया सजवाता। उस राजा ने सभी कार्यों के लिए दास नियुक्त कर दिए थे। दास भी ईमानदारी का परिचय देते और अपना कार्य बड़ी तत्परता से करते थे। एक दिन दास का फूलों की सेज सजाने का काम जल्दी समाप्त हो गया। उस दास ने सोचा कि राजा को आने में अभी देरी है , क्यों न मैं ही कुछ देर इस शैया पर लेट जाऊं। जिन्दगी में पहली बार शैया पर लेटा था। अत: तत्क्षण ही उसे नींद आ गयी। दास को समय का ख्याल ही नहीं रहा और राजा का आगमन हो गया।



जैसे ही राजा कमरे में प्रवेश करता है कि फूलों की सेज पर दास को सोते हुवे देखता है। तो उसका क्रोध उमड़ पड़ता है और वह बिना सोचे समझे चाबुक से उस दास की पिटाई प्रारम्भ कर देता है। दास पर जैसे ही चाबुक की मार पड़ी , वह एकदम हड़बड़ाकर जाग गया। राजा ने चाबुक से मार-मार कर उसकी चमड़ी लाल कर दी। वह दास कोड़े की मार से पीड़ित हो चीख-चीख कर रोने लगा। पर थोड़ी देर बाद वह दास बहुत जोर से हंसने लगा। राजा ने देखा कि अभी तक मार से यह प्राणों की भीख मांग रहा था, अब क्यों हंसने लगा ? निश्चित ही इसके हंसने में कोई रहस्य है।


राजा ने पूछा तुम अभी तक चाबुक की मार से रो रहे थे, अब क्यों हंस रहे हो ? दास ने कहा _ ' हजूर , कसूर माफ़ हो तो कहूँ। राजा ने कहा _ ' हाँ , कसूर माफ़ है। क्यों क्या कहना चाहते हो ? ' दास ने कहा _ ' हजूर , मैं एक घंटे के लिए फूलों की शैया पर सोया तो मुझे इतने चाबुक पड़े और आप कई वर्षों से इसमें सो रहे हैं तो आपको कितने चाबुक पड़ेंगे। इस विचार से मैं हंस पड़ा। '

राजा विचार करने लगता है _ हाँ, जब मेरे लिए सजे-सेज पर दास सोया तो मैंने इसे मारा। प्रकृति के सौन्दर्य के लिए पुष्पों की रचना हुयी है। यदि मैं इन फूलों को नष्ट करूंगा तो प्रकृति मुझ पर रुष्ट होगी और मुझे सजा देगी। यह विचार मन मीन आते ही राजा ने मन में एक संकल्प लिया कि मैं अपने शरीर के सुख के लिए कोई भी हिंसा नहीं करूंगा। साथ ही फूलों में , वृक्षों में , पानी में , अग्नि में , वायु में , पृथ्वी में भी हमारे जैसे जीव हैं, हमारे जैसे प्राण हैं। इन्हें हमें बिना प्रयोजन कष्ट नहीं देना चाहिए। संसार के किसी भी प्राणी को शरीर -सुख के लिए कष्ट देना पाप है। राजा की यह बात समझ में आ गयी कि वह अब शरीर का गुलाम बनकर नहीं रहेगा और वह स्पर्श-सुख से दूर ही रहेगा।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&

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