जो हो रहा है होने दें पूर्ण समर्पण का भाव
मानवीय अवसाद जहाँ जन्म-जात प्रवृत्तियों का दुष्परिणाम है, वहीं चिंता और तनाव को भी प्रबल करता है। अवसाद-मुक्ति के लिए उन कारणों को खोजा जाना चाहिए, जिनसे अवसाद उत्पन्न होता है। अनुकूल -प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं को संतुलित बनाये रहना ही ही अवसाद-मुक्ति का मार्ग है। अवसाद मुख्यत: तनाव और चिंता का परिणाम है। यह इस रोग के प्रभावी होने पर अनिद्रा, सिरदर्द , एकाग्रता का अभाव और भावात्मक निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है।
मानवीय अवसाद जहाँ जन्म-जात प्रवृत्तियों का दुष्परिणाम है, वहीं चिंता और तनाव को भी प्रबल करता है। अवसाद-मुक्ति के लिए उन कारणों को खोजा जाना चाहिए, जिनसे अवसाद उत्पन्न होता है। अनुकूल -प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयं को संतुलित बनाये रहना ही ही अवसाद-मुक्ति का मार्ग है। अवसाद मुख्यत: तनाव और चिंता का परिणाम है। यह इस रोग के प्रभावी होने पर अनिद्रा, सिरदर्द , एकाग्रता का अभाव और भावात्मक निष्क्रियता उत्पन्न हो जाती है।
अवसाद-जन्य रोग व्यक्ति के तन-मन दोनों को प्रभावित करते हैं। शारीरिक दृष्टि से व्यक्ति की पाचन-शक्ति अव्यवस्थित हो जाती है, खट्टी डकारें आती हैं, गैस बनती है , वही मानसिक दृष्टि से व्यक्ति हाथ आये सुखों और उपलब्धियों को नष्ट कर सम्पूर्ण जीवन को संत्रस्त कर लेता है। वह जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के लिए मृत्यु को एकमात्र उपाय मानता है, जब भी एकांत या अँधेरे में होता है तब अवसाद से मुक्त होने के लिए अपने पर फड़फड़ाता है , लेकिन उस जाल से निकलने का प्रयास करता है और न ही उस अँधेरी कोठरी से बाहर आकर मदद की गुहार करता है।
अवसाद वास्तव में नाजुक , भावुकऔर कोमलता-प्रिय लोगों का मानसिक रोग है। ऐसे व्यक्ति भावावस्था में कभी-कभी अनुचित कदम भी उठा लेते हैं , परिणामत: कभी रेल की पटरी पर सोकर आत्म-हत्या करते हैं और कभी फांसी के फंदे पर लटक जाते हैं। अवसाद-ग्रस्त व्यक्ति अपनी बसी -बसाई गृहस्थी से भी विमुख होकर मृत्यु को परम सुख मान लेता है। परिणाम यह होता है कि हर नाजुक स्थिति में मुकाबला करने का उसका मनोबल समाप्त हो जाता है और वह स्वयं ही बाहरी दुनिया से अपने को बिलकुल अलग कर देता है।
अवसाद से छुटकारा पाने के लिए जो लोग भावुक और कोमलता-प्रिय हैं, वे हादसा या विपरीत स्थिति सामने आने पर अपनी सहायता स्वयं करने की कोशिश करें। किसी की उन्नति को देखकर ईर्ष्या न करें , अपितु स्वयं के विकास के लिए प्रयत्नशील रहें। जीवन में बुरे से बुरा कुछ भी हो सकता है , पर मृत्यु किसी दुर्घटना से मुक्ति नहीं दिला सकती। हमें चाहिए कि हम अनहोनी का मुकाबला करने के लिए सदैव तत्पर रहें और मन विचलित हो जाए तो हाथ-पाँव न छोड़ न दे।
अवसाद से मुक्ति पाने के लिए कर्म-योग हितकारी है। हर समय किसी न किसी कार्य से व्यक्ति को जुड़े रहना चाहिए , ताकि अकर्मण्यता उसे न घेर सके। अकर्मणता अवसाद का मुख्य कारण है , इसलिए यह जब भी व्यक्ति पर हावी होती है तो उसे चाहिए कि वह मन में छायी निष्क्रिता को बलात झटके से किनारे फेंक दे।
जीवन सुख-दुःख का संगम है। इसलिए सुख आने पर प्रसन्नता और दुःख आने पर क्लेश का अनुभव करना अवसाद का मुख्य कारण है। अवसाद के रोग से मुक्त होने के लिए एक दुखी इंसान को ऐसे लोगों के बीच स्वयं को व्यस्त रखना चाहिए जो दुखी और असहाय हैं। इससे व्यक्ति अपने दुःख के बोझ को हल्का कर सकता है। दूसरों के दुःख को देख कर या सुनकर स्वयं को राहत मिलेगी और लगेगा कि हम अकेले नहीं है। .
अवसाद-मुक्ति के लिए कमजोर दिल के लोग एक बार हिम्मत बटोरें और नये सिरे से जीवन जीने की कोशिश करें अन्यथा वे शरीर को रोगों का घर बना लेंगे। अवसाद मन को घायल कर देता है और अस्वस्थ मन स्वस्थ शरीर को भी रुग्ण के देता है।*******************
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