गुरुवार, 4 नवंबर 2010

मन को दबाइए नहीं अपितु समझाइए

मन को दबाइए नहीं अपितु समझाइए 




जीवन की अंतिम साँस में जैसे भाव होते हैं , आगामी जन्म में वैसा ही प्रतिफल होता है मन नरक की यात्रा भी करा सकता है और स्वर्ग की भी। मन की अशुभ प्रवृत्तियां नरक का कारण हैं , वहीँ शुभ प्रवृत्तियां स्वर्ग का। मन सर्वशक्तिमान है। इसे दबाया नहीं जा सकता इसे समझाया जा सकता है।



मन का स्वभाव विपरीत की कामना करता है । कश्मीर में रहने वाला कन्याकुमारी जाकर समुद्र की लहरें देखना चाहता है । कन्याकुमारी में रहने वाला कश्मीर जाकर केसर की सुगंध लेना चाहता है । पुरुष-मन को स्त्री का आकर्षण और स्त्री-मन को पुरुष का आकर्षण , यही मन की विचित्र गतिविधि है ।

मन का संबंध शरीर के हर तन्तु के साथ जुड़ा है , पर तभी तक जब तक शरीर का आत्मा के साथ सम्बन्ध है । इसलिए मन श्री में तब तक रहता है , जब तक शरीर मुर्दा न हो जाए । जन्म से लेकर मृत्यु तक मन की महत्ता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता । मन को समग्रतया साधने के लिए हम मन एवं उसके भीतरी -बाहरी परिवेश को समझने की चेष्टा करें । अगर मन को उचित दिशा दी जाए , तो वह कार्य भी कर सकता है , जो मुक्ति में सहायक हो ।

मन का स्थान कहाँ है ? यह प्रश्न बहुत जटिल है । कुछ लोग इसे मस्तिष्क में मानते हैं । कुछ लोग इसका केंद्र - बिंदु ह्रदय में मानते हैं । यद्यपि यह बात सही है कि मन की वृत्तियों से सर्वाधिक मस्तिष्क ही प्रभावित होता है , परन्तु उसकी तरंगें सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित होती हैं ।*****************************


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