ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडत होय
परमात्माके द्वार पर तो प्रेम और श्रद्धा का ही स्वागत होगा। परमात्मा को हजारों फूल और सोने के कलशों में भरे दूध की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा के द्वार पर स्वागत है श्रद्धा के फूल का , प्रेम के दूध का , भले ही वह दौने में भरा हो। परमात्मा हमारे पास है , हमारे इर्द-गिर्द है , स्वयं हम में है। आवश्यकता है अंतर्जीवन में झाँकने की। भक्त की भावना तो पत्थर में भी भगवान को उत्पन्न कर देती है।
परमात्माके द्वार पर तो प्रेम और श्रद्धा का ही स्वागत होगा। परमात्मा को हजारों फूल और सोने के कलशों में भरे दूध की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा के द्वार पर स्वागत है श्रद्धा के फूल का , प्रेम के दूध का , भले ही वह दौने में भरा हो। परमात्मा हमारे पास है , हमारे इर्द-गिर्द है , स्वयं हम में है। आवश्यकता है अंतर्जीवन में झाँकने की। भक्त की भावना तो पत्थर में भी भगवान को उत्पन्न कर देती है।
भक्ति के मार्ग में नारी अधिक प्रगति कर सकती है। भक्ति-मार्ग में समर्पित ह्रदय की आवश्यकता है और समर्पण स्त्री का गुण है। नारी जब समर्पित होती है तो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। पुरुष का पुरुषत्व अहंकार का बोधक है और समर्पण में न केवल मान अपितु स्वाभिमान भी धराशायी हो जाता है।
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