बुधवार, 3 नवंबर 2010

ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडत होय

ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडत होय 



परमात्माके द्वार पर तो प्रेम और श्रद्धा का ही स्वागत होगा। परमात्मा को हजारों फूल और सोने के कलशों में भरे दूध की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा के द्वार पर स्वागत है श्रद्धा के फूल का , प्रेम के दूध का , भले ही वह दौने में भरा हो। परमात्मा हमारे पास है , हमारे इर्द-गिर्द है , स्वयं हम में है। आवश्यकता है अंतर्जीवन में झाँकने की। भक्त की भावना तो पत्थर में भी भगवान को उत्पन्न कर देती है।

भक्ति के मार्ग में नारी अधिक प्रगति कर सकती है। भक्ति-मार्ग में समर्पित ह्रदय की आवश्यकता है और समर्पण स्त्री का गुण है। नारी जब समर्पित होती है तो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। पुरुष का पुरुषत्व अहंकार का बोधक है और समर्पण में न केवल मान अपितु स्वाभिमान भी धराशायी हो जाता है।

प्रेम के परमाणु संसार में सदा शाश्वत रहे हैं। चाहे जैसी हिंसा और आतंक का साया रहा हो , इस संसार पर प्रेम की धारा तो सतत प्रवाहित रही है। बिना प्रेम के ईश्वर मौन है , दर्शन पंगु और संसार अंधकारमय है।****


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