सोमवार, 28 मार्च 2011

हाथ धोके पीछे पड़ना

हाथ धोके पीछे पड़ना 




अन्यान्य तरीकों से तन को प्रक्षालित कर प्राणी शरीर को पवित्र मान लेते हैं और अपने में एक संतुष्टि का अनुभव करते हैं कि  वह पवित्र और निर्मल हो गया है । इस शरीर को अनंत बार स्वच्छ बनाने का प्रयास किया पर यह पवित्र नहीं हुवा फिर भी जीव ने अपना पुरुषार्थ नहीं छोड़ा । इस शरीर की निर्मलता हेतु हमें आवश्यकता उत्तम गुणों के अपनाने की । 


इसकी निर्मलता हेतु हमें आवश्यकता है अंत:करण को शुद्ध करने की । जिस क्षण भी इसमें डुबकी लगा लेंगे उस क्षण ही समस्त कर्म-कालुष्य , राग-द्वेष आदि विकार , भोग आदि दुष्प्रवृत्तियाँ सभी ही प्रक्षालित हो जाएँगी और अंत:करण के निर्मल स्वरूप के प्रकट हो जाने पर यह शरीर भी पवित्र हो जायेगा । ईंट गारे के बने हुवे मकान में भगवान की प्रतिमा के विराजमान हो जाने पर वह मकान भी मन्दिर बन जाता है , देवता हो जाता है और पूज्यता को प्राप्त हो जाता है । यह देह भी परम पवित्र बन जाती है । धातु , उपधातु आदि विकार से रहित हो जाती है । अत: हमें अंत:करण को प्रक्षालित करने का प्रयास करना चाहिए । अंत:करण शरीर और आत्मा के मध्य की एक कड़ी है ; इसके निर्मल होते ही ये दोनों भी निर्मलता को प्राप्त हो जाते हैं ।



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