शनिवार, 14 सितंबर 2013

है अँधेरी रात तो दीपक जलाना कब मना

है अँधेरी  रात तो दीपक जलाना कब मना 




तमसो मा ज्योतिर्गमय ` अर्थात अंधकार की ओर नहीं , अपितु ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर चलो . प्रकाश की ओर बढ़ना प्रगति की ओर बढ़ना है . एक दीप हो अंधकार का नाश कर देता है , जबकि अनेक दीपक प्रकाशोत्सव बना देते हैं . प्रकाश का जीवन में बहुत ही महत्त्व है . प्रकाश अपने आप में एक सृजन का प्रतीक है . प्रकाश जीवन को उल्लासमय बना देता है . प्रकाश उत्साह एवं जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है . लेकिन जीवन की ज्योति तो आत्मा से प्रकाशित होती है . प्रत्येक व्यक्ति एक दीप के समान है , जो आत्मतत्त्व की ऊर्जा से संसार को प्रकाश दे सकता है . समाज के उत्थान के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए और स्वयं की प्रगति के लिए विवेक की शांति चाहिए . प्रेम की ज्योति घृणा एवं द्वेष के तिमिर को नष्ट करने में समर्थ है . ` आत्मदीपो भव ` के अनुसार स्वयं को एक दीपक के समान बनाना चाहिए और इसी दीप से प्रकाश प्राप्त हो सकता है और यह प्रकाश ही जीवन का सही लक्ष्य निर्धारित करता है .


जब हर्ष एवं उल्लास को व्यक्त करना हो या शांति व समृद्धि का संदेश देना हो तो दीपावली सजाई जाती है , लेकिन आत्मा बिलकुल परमात्मा है . वह अपने गुणों में दृश्यमान है . मानवता के गुण धर्म उन दीपों के समान हैं , जो कभी भी नहीं बुझते , पर हित के लिए सदैव जलते रहते हैं . परोपकार सभी गुणों का प्रेरक है , अर्थात इसी से सभी दीपों को प्रकाश मिलता है . निस्वार्थ भावना से ही त्याग का गुण प्रकट होता है . यही दीपावली की आध्यात्मिकता है .


जीवन में आत्मानुभूति से ही आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ होती है . शुचिता का उदगम परमार्थ है . पवित्रता का स्रोत आत्मसमर्पण है . जीवन में सदैव प्रकाश रहता है और अंधकार कभी नहीं रहता . आनन्द की वर्षा होती है , कोई भी उपलब्द्धि असाध्य नहीं रहती है . प्रकाश के इस पावन पर्व पर जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त होता है .*****




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