रविवार, 15 सितंबर 2013

जीवन का हर कर्म आनन्द के साथ

जीवन का हर कर्म आनन्द के साथ  


जीवन का आधार प्राण है और वहां गति है . जहाँ गति है ,वहां लय , गीत एवं संगीत है . जीवन एक उत्सव के रूप में धारण करना चाहिए .  कला आनन्द का स्रोत है और आनन्द पूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए . जीवन का हर कर्म आनन्द के लिए नहीं , अपितु आनन्द के साथ होना चाहिए . प्रभु सच्चिदानन्द रूप है . स्वयं हम सत , चित एवं आनन्द रूप ही हैं . यही प्रभु का संयोग एवं योग है . सच्चिदानन्द का सच्चिदानन्द से मिलन ही अद्भुत योग है .

भारतीय चिन्तन एवं दर्शन वैदिक पृष्ठभूमि पर आधारित है . ईश्वर . जीव एवं प्रकृति के सम्बन्धों का चिंतन- मनन कर आनन्द के अनंत सागर तक हमें पहुंचाता है . जीवन में कभी भी निराशा का क्षण नहीं आने देता . वह कर्म करने की सतत प्रेरणा से ओतप्रोत है . कर्म भी वह जो फल की आसक्ति से रहित हो . निष्काम कर्म की भावना से पूर्ण कर्म होना चाहिए . प्रकृति हमारा आदर्श और हमारी प्रेरणा है . नदियाँ जिस प्रकार अपना जल स्वयं नहीं पीतीं तथा वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते हैं . बदल अपने हित के लिए नहीं बरसते हैं . इसी प्रकार सज्जन व्यक्तियों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है __

                            " पिबन्ति नद्य: स्वयमेव नोदकं , स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षा: .
                             धराधरो वर्षति नात्महेतवे , परोपकाराय सतां विभूतय : "


प्रकृति के कण-कण में आनंद का वास होता है . उगते सूर्य की किरणें , पक्षियों का कलरव , रंग-बिरंगे फूलों पर ओस की बूँदें जैसे सामान्य दृश्य भी किसके ह्रदय को आल्हादित नहीं करते . हमारे आनन्द का स्रोत ह्रदय है . हमारे मन में जीवन , जगत एवं समाज के प्रति जैसा दृष्टि कोण है , वैसा ही हमारे चरों ओर प्रतिक्रिया संसार में प्रकट होता है . हम जितना सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएंगे उतना ही सांसारिक समस्याओं का समाधान हमें आसानी से मिल जायेगा .

हमारा मन स्वभाव से चंचल है . वह समय और स्थान की परिधि में बंधना नहीं चाहता है . हम वर्तमान में नहीं रहना चाहते हैं . भूत का संशय एवं भविष्य की अनिश्चितता हमें उद्वेलित करती रहती है . वास्तव में वर्तमान क्षण _ ' तत्क्षण ' ही महत्त्वपूर्ण है , अपितु ' न भूतो न भविष्यति ' पूर्णत: महत्त्वहीन है . ओशो के शब्दों में _  ' भूत और भविष्य को भूल जाओ और वर्त्मन में जीओ . आज सदा कर्म है और फल सदा कल . फल तो कल्पना में है . फल का अस्तित्व नहीं है , अस्तित्व तो कर्म का है . ' 

जीवन-चेतना का एक प्रवाह है _ वर्तमान से भविष्य की ओर . जीवन एक आरोहण है , आत्मा से परमात्मा की ओर . जीवन एक महा यात्रा है , मृत्यु से अमरता की ओर . जीवन एक प्रयोगशाला है , अपने आपको जानने , समझने और विश्लेषण करने की . बुद्ध ने अपने अंतिम क्षणों में अपने शिष्यों को उपदेश दिया _ ' अप्प दीपो भव ' अर्थात अपने दीपक स्वयं बनो . अपनी शक्तियों को पहचानो और उन्हें उजागर करो . मन की शक्ति अतुल अपार है . यदि मन हमारे वश में हो जाये तो जीवन की महानतम उपलब्द्धियों को प्राप्त किया जा सकता है .

हमे शास्त्रों में कहा गया है कि मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है . मोक्ष का अर्थ है मुक्ति . मुक्ति_ अज्ञानता  से , इच्छाओं से , मोह एवं अंधकार से . इसे प्राप्त करने के लिए मन को वश में करना आवश्यक है  
है . मन को वश में करने के लिए बुद्धि का अंकुश आवश्यक है . यदि मन में उत्कर्ष की भावना है तो हम अपनी स्वाभाविक प्रतिभाओं को विकसित करने में समर्थ हैं . साहित्य,संगीत , कला की विधाओं में जीवन के विभिन्न भाव-हर्ष , उल्लास , प्रेम , सौहार्द , करुणा , दया आदि बिखरे होते हैं , जो आनन्द के स्रोत हैं . सुख तो भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति से भी मिल सकता है , जो नाशवान हैं . सुख निर्मित है , परन्तु आनन्द असीम एवं अनंत है और यह निरंतर बढ़ता रहता है . आनन्द उसी सर्वोच्च , सर्वव्यापक , सर्वशक्तिमान के साथ स्थायी सम्बन्ध रखने में है . ओस्कर वाइल्ड के अनुसार _  ' It does not matter how long but how you live . '


इतिहास साक्षी है _  आदि गुरु शंकराचार्य केवल 32 वर्ष में के लघु जीवन में देश के चारों चार धाम की स्थापना कर जगद्गुरु की उपाधि से सम्मानित हुवे . शंकर का वेदांत भारतीय चिन्तन धारा का परम उत्कर्ष है . स्वामी विवेकानन्द ने केवल 39 वर्षों के लघु जीवन में नव्य- वेदांत की स्थापना कर मानव-सेवा को सबसे बड़े धर्म के रूप में प्रस्तुत किया .

अस्तु , जीवन एक उत्सव है और जो इसे उत्सव के रूप में देखता है , वह वास्तव में जीवन की गति एवं प्राण को प्राप्त कर लेता है .^^^^^^^^^^^^^^^^








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