पञ्च कोषीय यात्रा
पंच कोषीय यात्रा से तात्पर्य __ शरीर एवं आत्मा में स्थित पंच कोषों की यात्रा से है .ये कोष क्रमश:
_ अन्नमय कोष , प्राणमय कोष , मनोमय कोष , विज्ञानमय कोष एवं आनन्दमय कोष हैं . इस यात्रा हेतु शवासन अथवा ध्यान में बैठा जा सकता है .
पंच कोषीय यात्रा से तात्पर्य __ शरीर एवं आत्मा में स्थित पंच कोषों की यात्रा से है .ये कोष क्रमश:
_ अन्नमय कोष , प्राणमय कोष , मनोमय कोष , विज्ञानमय कोष एवं आनन्दमय कोष हैं . इस यात्रा हेतु शवासन अथवा ध्यान में बैठा जा सकता है .
सर्वप्रथम अन्नमय कोष है . एकरूप से यह सम्पूर्ण शरीर का ही पूर्ण रूप है . यह स्थूल शरीर की सूक्ष्म यात्रा है . इसके अंतर्गत स्थूल शरीर को मन की आँखों द्वारा देखा जाता है . इसमें देखना होता है कि शरीर कैसा है ? और इसमें क्या-क्या तत्व हैं ? शरीर के ऊपर रोयें या बाल हैं फिर त्वचा की सात परते हैं और उसके नीचे मांस , चर्बी हड्डियाँ हैं . इसके साथ ही नीली , लाल व सफेद नाड़ियाँ हैं ; जिनकी संख्या ७२००० से ऊपर है . इन नाड़ियों के कार्य भी भिन्न - भिन्न हैं . मुख्य रूप से धमनी , शिरा एवं सुषुम्ना हैं . धमनियां रक्त को ह्रदय से सम्पूर्ण शरीर में पहुंचाती हैं तथा शिराएँ रक्त को शरीर से वापिस ह्रदय को पहुंचाती हैं एवं शरीर से मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं .
इसी प्रकार पाचन प्रणाली से सम्बद्ध अंग पाचन का कार्य करते हैं . 10 मीटर लम्बी अंत: वाहिनी नली में आहार , अमाशय , छोटी आंत , बड़ी आंत व मलाशय आते हैं . उसके साथ ही हमारे शरीर में में स्थित ग्रन्थियां भी पाचन कार्य के सहायक होती हैं . ये ग्रन्थियां नलिका युक्त व नलिका विहीन दोनों ही तरह की होती हैं . जैसे पैनक्रियाज , लीवर , गालब्लेडर , एडरीनल ग्लेन्ड , थायराइड ग्लेन्ड , पेराथायी ग्लेंड्स आदि . इनमें से कुछ पाचन में सहायक हैं और कुछ हारमोंस बनाते हैं एवं शरीर को संतुलित करते हैं तथा हमें रोग-मुक्त रखते हैं .
साथ ही श्वसन प्रणाली को देखना चाहिए . स्वर-तंत्र व फेफड़े में इतने कोष हैं कि अगर उन्हें पृथ्वी पर बिछाएं तो दो बीघे घेर लेंगे . ये ही कोष रक्त को आक्सीजन युक्त करते हैं व कार्बन डाई आक्साइड मुक्त करते हैं . यही कोष छोटी-छोटी साँस लेने के कारण मृतप्राय हो जाते हैं . इन्हें सक्रिय करने के लिए हमें गहरे - लम्बे सांस लेने चाहियें .
इसी प्रकार विसर्जन प्रणाली , पाचन प्रणाली , प्रजनन प्रणाली , स्नायु प्रणाली आदि का अवलोकन करना चाहिए . इसके बाद श्वेत एवं लाल कणिकाओं को देखना चाहिए . अनन्तर मेरु दंड की 33 गोटियों निहारें एवं शरीर की 206 हड्डियों को तथा इनके जोड़ों को निहारना चाहिए . यह भाव मन में रखें कि यह शरीर वास्तव में मेरा नहीं है और मुझे बस प्रयोग करने के लिए ही मिला है . फिर भी मैं कौन हूँ , कहाँ से आया हूँ और मेरा क्या ध्येय है इस पर विचार करना चाहिए . यह स्थूल शरीर जो अन्न द्वारा पोषित है तथा यह पंच भूतों एवं स्थूल इन्द्रियों से निर्मित हुवा है . वस्तुत: यह शरीर नश्वर है . यही प्रथम अन्न कोषीय यात्रा है .
इसके बाद द्वितीय प्राणमय कोष की यात्रा प्रारम्भ होती है . हमारा मस्तिष्क आदेश देता है कि पैर की अंगुलियाँ एवं हाथ की अंगुलियाँ धीरे-धीरे हिलाओ . अब समझें एवं सोचें कि यह आदेश किसे दिया गया ? यही प्राण है और इससे ही अंगुलियाँ हिलनी शुरू होती हैं . खोजें कि शरीर में प्राण कहाँ हैं . वास्तव में हमारा सम्पूर्ण शरीर ही प्राणमय है . इसे तेजस भी कहा गया है . इससे ही शरीर गतिमान होता है . यही प्राणमय कोष है . इसे कर्मेन्द्रियों को वश में करके ही साधा जा सकता है .
इसके बाद तृतीय कोष मनोमय कोष की यात्रा की जाती है . देखें कि हमारे नाक , कान , आँख , रसना एवं त्वचा हमें शांत नहीं बैठने दे रही हैं . ये ही ज्ञानेन्द्रियाँ शक्तिस्वरूपा हैं तथा इन्हें साधने का प्रयास करना चाहिए . यहाँ अपने मन को देखें . यहाँ विचारों का आदान-प्रदान होता है . धीरे-धीरे यह कम होना प्रारम्भ होगा और फिर शांत होता चला जायेगा . यह मन एकाग्रचित्त और निर्विचार होता चला जायेगा . यहो मनोमय कोषीय यात्रा है .
सधते ही हम सूक्ष्म शरीर से आगे बढ़ेंगे . यह सुषुप्ति की अवस्था है . प्राण होते हुवे भी शरीर शांत है . सांसे भी सूक्ष्म हो जाती हैं . यही विज्ञानमय कोषीय यात्रा है .अब चतुर्थ कोष विज्ञानमय कोष की यात्रा करनी चाहिए . यह सोचना चाहिए की मेरा स्थूल शरीर शांत , और मन अर्थात सूक्ष्म शरीर भी शांत है . पर मेरी बुद्धि , जो सही - गलत का निर्णय लेती है वह शांत नहीं है . यह अहंकारयुक्त और संशय से भरी हुयी है . इसे भी साधना चाहिए . इसके
अंतिम पांचवां कोष आनन्दमय कोष है . इस यात्रा में शांति ही शांति है तथा परम सुख का भाव है . यहाँ आनन्द का भाव ही शेष रह जाता है . यह सच्चिदानन्द स्वरूप है ; सत्य- चित - आनन्द का भाव ही वर्तमान रहता है . यहाँ आकर सब कुछ शांत होने लगता है . यही आनन्दमयी कोष यात्रा है .
धीरे-धीरे इस स्थिति में पहुँचने पर मन ही मन ॐ की ध्वनि पांच या सात बार करनी चाहिए . इसके बाद अपने स्थूल शरीर को धीरे - धीरे हिलाकर कुछ देर शांत बैठ कर परम आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है .********
सधते ही हम सूक्ष्म शरीर से आगे बढ़ेंगे . यह सुषुप्ति की अवस्था है . प्राण होते हुवे भी शरीर शांत है . सांसे भी सूक्ष्म हो जाती हैं . यही विज्ञानमय कोषीय यात्रा है .अब चतुर्थ कोष विज्ञानमय कोष की यात्रा करनी चाहिए . यह सोचना चाहिए की मेरा स्थूल शरीर शांत , और मन अर्थात सूक्ष्म शरीर भी शांत है . पर मेरी बुद्धि , जो सही - गलत का निर्णय लेती है वह शांत नहीं है . यह अहंकारयुक्त और संशय से भरी हुयी है . इसे भी साधना चाहिए . इसके
अंतिम पांचवां कोष आनन्दमय कोष है . इस यात्रा में शांति ही शांति है तथा परम सुख का भाव है . यहाँ आनन्द का भाव ही शेष रह जाता है . यह सच्चिदानन्द स्वरूप है ; सत्य- चित - आनन्द का भाव ही वर्तमान रहता है . यहाँ आकर सब कुछ शांत होने लगता है . यही आनन्दमयी कोष यात्रा है .
धीरे-धीरे इस स्थिति में पहुँचने पर मन ही मन ॐ की ध्वनि पांच या सात बार करनी चाहिए . इसके बाद अपने स्थूल शरीर को धीरे - धीरे हिलाकर कुछ देर शांत बैठ कर परम आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है .********
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