भाग्य का निर्माण ईश्वर या कोई ढेकेदार नहीं करता। हम ही हैं उसके प्रथम और अंतिम कर्त्ता। हम अपने भाग्य का निर्माण हम जैसा चाहें , वैसा ही कर सकते हैं। दूसरे तत्त्व बीच में नहीं आ सकते हैं। अच्छे भाग्य के लिए हमें अच्छे कर्म करने चाहियें। अन्यथा दुविधा और द्वन्द्वों में फंसते चले जायेंगे। फिर किसी से कहने का कोई लाभ नहीं होगा। इसे मानने से ही व्यक्ति वस्तुत: मनुष्य बन सकता है , अन्यथा वह पशु ही रह जाएगा।*********
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