रविवार, 15 सितंबर 2013

मनन से मुनि और मुनि से मौन बना

मनन से मुनि और मुनि से मौन बना है 


मनन से मुनि और मुनि से मौन बना है . मौन- व्रत के साथ मन की चंचलता पर नियंत्रण जरूरी है . मौन एक मानसिक साधना है . मौन के द्वारा मनुष्य को अंतर जगत में प्रवेश करने का अवसर मिलता है . इसमें मुख से कुछ न बोलते हुवे इन्द्रियों पर विजय पाने का प्रयास किया जाता है . क्योंकि इन्द्रियों पर विजय पाए बिना सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती . मुख को बंद कर लेना ही मौन नहीं होता . वाणी- संयम के साथ - साथ आचार - विचार का संयम भी अनिवार्य है . मनोयोगपूर्वक किया गया मौन मानसिक शांति तथा आध्यात्मिक उत्कर्ष प्रदान करता है . मौन की साधना दया , सत्य , अहिंसा , ब्रह्मचर्य , परोपकार जैसे गुणों के आधार पर होती है .

साधना के लिए मौन अनुपम निधि है . इसके द्वारा प्रभु से संवाद उत्पन्न किया जा सकता है . भय से उत्पन्न मौन जड़ता का प्रतीक है , किन्तु संयम जन्य साधना में मौन साधक का भूषण है . श्री कृष्ण ने गीता में मौन को विभूति के रूप में स्वीकार किया है . उन्होंने कहा है कि गुप्त रखने योग्य भावों में स्वयं को मौन के रूप में स्वीकृति प्रदान की है .

' महाभारत ' के लेखन में गणेश जी की तन्मयता देखकर व्यास जी पुलकित थे . जब ग्रन्थ पूर्ण हो गया तो व्यास जी ने पूछा _ ' गणेशजी , आपने ग्रन्थ - लेखन कार्य में मौन - व्रत क्यों धारण कर लिया था . ' गणेशजी ने बताया _ ' यदि मैं बोलता तो महत्त्वपूर्ण कार्य जल्दी पूर्ण नहीं होता . ' तात्पर्य यह है कि मौन रहकर गणेशजी ने ' महाभारत ' जैसा विशाल ग्रन्थ लिखने में सफलता पाई .

मौनव्रत आत्म- कल्याण के लिए किया जाता है . और जन कल्याण के लिए भी . बहुत से लोग मौनव्रत के माध्यम से अपनी संकल्प - बद्धता को को दिशा प्रदान करते हैं . मों एक उत्तम साधना है इसके माध्यम से व्यक्ति ऊंचे शिखर तक पहुँच सकता है . मौन की महत्ता को प्रतिपादित करते हुवे महाकवि दिनकर ने कहा है _ ' वाणी का वर्चस्व यदि रजत है तो मौन कंचन है . '

मौन को सर्वाधिक महत्त्व ' watch ' शब्द के द्वारा प्रस्तुत किया गया है . यह शब्द ' w ' से ' watch your words ' के लिए कहता है . इसके बाद ही ' action , thought , character , habits आदि का स्थान आता है . अत: मौन की ही सर्वाधिक प्रतिष्ठा है .***************












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