शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

काहे धोये ये मल-मल सरीर

काहे धोये ये मल-मल सरीर  




वैसे तो शरीर को पवित्र और आत्मा को परम पवित्र के रूप में विवेचित किया गया  है । शरीर की अपवित्रता से परिचय कराते हुवे कह दिया गया है कि विश्व में जितने भी पदार्थों को अशुभतम माना जाता है , जिन्हें छूना भी पाप समझा जाता है ; ऐसे सम्पूर्ण पदार्थों का प्रमुख रूप यह शरीर ही है । यह शरीर स्वयं तो अस्पृश्य पदार्थों का घर है ही किन्तु इसकी एक और विशेषता है कि यह अपने सम्पर्क में आने वाले पदार्थों को मलिन कर देता है । एवं उन्हें अछूत व दुर्गन्धित बना देता है । यह शरीर केसर , चन्दन आदि पदार्थों को भी मलिन कर देता है ।





आश्चर्य की बात है कि ऐसा महामलिन शरीर भी पवित्रता को प्राप्त हो सकता है । पुरुषार्थ करने पर पाषाण में भी अपना चेहरा देखा जा सकता है । इसप्रकार अपवित्र को भी पवित्र बनाया जा सकता है । आवश्यकता है पुरुषार्थ की । सम्यक ज्ञान और चरित्र से सुसज्जित यह शरीर भी पवित्र एवं पूज्य माना गया है । कीचड़ युक्त जल भी योग्य प्रक्रियाओं से गुजरने के उपरांत निर्मल स्वरूप को प्राप्त कर सकता है । $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$


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