शनिवार, 9 अप्रैल 2011

हवाई नहीं , जमीन पर रहिये

हवाई नहीं ,जमीन पर रहिये 



निज पुरुषार्थ के अहंकार से पीड़ित प्राणी नाना प्रकार के संकल्प मन में धारण करता है ।  एक विद्यार्थी सोचता है कि वह कक्षा में सर्व-प्रथम आयेगा , पर वह चाहते हुवे भी नहीं आ पाता । प्रत्येक माता-पिता के दिल में एक भावना रहती है कि उनका बेटा अच्छे से अच्छा नागरिक बने और वह उच्च से उच्चतम पर पहुंचे । साथ ही उनकी यह भी  इच्छा होती है कि वह एक सफल व्यक्ति बने तथा सदाचारी और आज्ञाकारी हो । पर बेटा व्यसनों में फंसकर धन-वैभव ही नहीं अपितु जीवन भी बर्बाद कर देता है ।


क्योंकि जो भी कार्य हमारे द्वारा पूर्ण होते हैं , उनमें मात्र हमारा पुरुषार्थ ही पूर्ण नहीं है । वास्तव में यदि पुरुषार्थ ही पूर्ण होता तो मानव द्वारा किया हुवा कोई भी कार्य अपूर्ण नहीं रह पाता । वह कभी भी असफल न होकर सदैव ही सफलता की श्रेणियां पार करता हुवा शीघ्र ही अपनी मंजिल तक पहुँच जाता । अत: मनुष्य को व्यर्थ का अहंकार नहीं करना चाहिए । सद-पुरुषार्थ करना चाहिए एवं फल की किसी भी प्रकार की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए । *******

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