बुधवार, 20 अप्रैल 2011

कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागा

 कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागा 



वनवास के दौरान श्रीराम ने लक्ष्मण को माध्यम बनाकर संसार को  ज्ञान दिया । एक बार लक्ष्मण ने राम से पूछा की किस प्रकार के प्राणी को अभागा समझना चाहिए ? राम ने कहा _ ' कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागा । ' जो व्यक्ति बुद्धिहीन है साथ में चालाक व कठोर है तो उसी को अभागा कहते हैं । कुटिलता और कठोरता के कारण वह अपने लिए बुरे समय का निर्माण स्वयं करता है ।


एक स्थान पर मेंढ़कों का झुण्ड रहता था । उनमें एक मेंढ़क चालाक था । वह झुण्ड वालों को तंग करने की युक्तियाँ सोचता था । इसी के अधीन वह एक सांप के पास गया और उसे बताया कि अमुक स्थान पर तुम्हारे लिए बहुत भोजन है , चलिए । वह सांप वहाँ आया और मेंढ़कों को खाना शुरू कर दिया । आखिर में उस मेंढ़क की बारी आ गयी । मेंढ़क ने सांप से कहा कि मैं तुम्हें बुलाकर लाया था । इसलिए तुम मेरे साथ ऐसा न करो । इस पर सांप ने कहा कि तुम मेरा भोजन हो और मैं अपना भोजन कैसे छोड़ दूँ ? इससे यह सिद्ध होता है कि कुटिलता के कारण उस मेंढ़क ने अपनी बिरादरी पर बुरे दिन बुलाये ।


स्पष्टत: प्रारब्द्ध के अलावा भगवान किसी को अभागा नहीं बनाना चाहते । इसलिए मनुष्य को अपने पूर्व संचित कर्म भोग के अलावा और सुख और दुःख उसके खुद के निर्मित हैं। रावण के चरित्र से हम पाते हैं कि वह स्वर्ण-नगरी में निवास करता था । वह ज्ञानी था , परन्तु कठोरता और कुबुद्धि के कारण उसके पूरे वंशज युद्ध में मारे गये । कुटिलता और कठोरता के कारण ऐसे व्यक्ति विवेक से सोचते नहीं । यही रावण ने भी किया । उसने अपने भाई विभीषण तथा अपने मामा माल्यवंत का निरादर किया । अंत में अपने कुल का घातक बना ।


यही हाल द्वापर में दुर्योधन ने किया । केवल अपनी कठोरता , कुटिलता व कुबुद्धि के कारण उसने अपने परिवार के साथ उस समय की सबसे बड़ी सेना का संहार कराया । इतिहास और अनेक ग्रन्थों के ये उदाहरण यह समझाते हैं कि हमें अपने विवेक से सोचकर कोई कदम उठाना चाहिए । सबके ह्रदय में भगवान निवास करते हैं और जहाँ भगवान निवास करते हैं , वहां समस्त वैभव व सौभाग्य उपस्थित रहता है। ++++++



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