समय से पहले और भाग्य से अधिक नहीं
संसार में संसरण करते हुवे तथा अविरल रूप से दुखों का उपार्जन करते हुवे या सुख-दुःख के झूले में झूलते हुवे भी प्रत्येक प्राणी के मन में एक ही आस है कि येन केन कें प्रकारेण सुख-शांति की प्राप्ति हो । वह सुखी रहे , उसका परिवार और समाज सुखी हो , धन-धान्य से परिपूर्ण हो। उसका व्यापर अच्छा चले , उसकी दूकान अच्छी हो , उसका मकान अच्छा हो और ईमानदार -वफादार सेवक उसके आगे पीछे घूमते रहें । उसके पुत्र आज्ञाकारी हों तथा पढ़-लिखकर सुयोग्य बनें । उसकी पत्नी आज्ञा पूर्ण रूप से पालन करे । कहने का तात्पर्य है कि मैं और मेरे के मध्य उलझा हुवा प्राणी स्व एवं अपने लोगों की सम्पूर्ण उन्नति की कामना करता है ।
संसार में संसरण करते हुवे तथा अविरल रूप से दुखों का उपार्जन करते हुवे या सुख-दुःख के झूले में झूलते हुवे भी प्रत्येक प्राणी के मन में एक ही आस है कि येन केन कें प्रकारेण सुख-शांति की प्राप्ति हो । वह सुखी रहे , उसका परिवार और समाज सुखी हो , धन-धान्य से परिपूर्ण हो। उसका व्यापर अच्छा चले , उसकी दूकान अच्छी हो , उसका मकान अच्छा हो और ईमानदार -वफादार सेवक उसके आगे पीछे घूमते रहें । उसके पुत्र आज्ञाकारी हों तथा पढ़-लिखकर सुयोग्य बनें । उसकी पत्नी आज्ञा पूर्ण रूप से पालन करे । कहने का तात्पर्य है कि मैं और मेरे के मध्य उलझा हुवा प्राणी स्व एवं अपने लोगों की सम्पूर्ण उन्नति की कामना करता है ।
कहीं किसी प्रकार की कमी उसे सहन नहीं है और फांस की तरह हृदय में वेदना उत्पन्न होती रहती है । परन्तु इस बात पर कभी विचार नहीं किया कि जिसका जैसा होना है वैसा ही होगा , व्यक्ति स्वयं इसका कर्त्ता नहीं है । यदि उसके अनुसार कार्य होना होता तो इस विशाल संसार में दुःख का नामोनिशान नहीं होता । क्योंकि सभी अपने -अपने को स्वर्ग क्या अपितु मोक्ष दिलाने की कोशिश करते तथा दूसरों को नरक आदि दुर्गतियों में धकेल देते । स्वयं करोड़पति बन जाते और अपने दुश्मनों को दो कोड़ी का भी नहीं रहने देते । सम्पूर्ण व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती । कोई भी किसी का कुछ भी करने को तत्पर हो जाता , पर ऐसा होता ही नहीं है । भाग्य से अधिक किसी को मिलता नहीं है तथा समय से पूर्व कार्य होता नहीं है ।&&&&&&&&&
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