शेख चिल्ली की व्यथा __कल्पना
अपनी कल्पना -शक्ति द्वारा हम असत्य को सत्य रूप में मान लेते हैं और जो हमारे लिए एक दुश्चिंता जा कारण बनता है । हम कल्पना के सहारे अपनी शुभ भावनाओं की उड़ान न भरें । कल्पना की विकृत अवस्था तब आती है कि हम अपने मन का निग्रह न करके , दिवा-स्वप्न में खोये रहते हैं और भ्रम की दुनिया में गोते लगाते रहते हैं । और जिसमें न सत्यता होती है एवं न वास्तविकता ही ।
अपनी कल्पना -शक्ति द्वारा हम असत्य को सत्य रूप में मान लेते हैं और जो हमारे लिए एक दुश्चिंता जा कारण बनता है । हम कल्पना के सहारे अपनी शुभ भावनाओं की उड़ान न भरें । कल्पना की विकृत अवस्था तब आती है कि हम अपने मन का निग्रह न करके , दिवा-स्वप्न में खोये रहते हैं और भ्रम की दुनिया में गोते लगाते रहते हैं । और जिसमें न सत्यता होती है एवं न वास्तविकता ही ।
कल्पना के सम्बन्ध में एक कथा है कि एक व्यक्ति अधिक कल्पनाशील था । तमोगुणी स्वभाव के कारण वह नशा करने का भी अभ्यस्त हो गया था । वह व्यक्ति प्रारम्भिक नशे की हालत में सड़क के किनारे बगल में एक छेददार छोटा बक्शा दबाये बहकते कदमों से जा रहा था । रास्तेमें उसका मित्र मिला और पूछा _ ' भाई किधर जा रहे हो ? और इस बक्शे में क्या लिए जा रहे हो ? ' वह नशे की हालत में बोला _ ' तुम तो जानते हो , अभी तो मेरा नशा शुरू हो रहा है और जब नशे में पूरा मस्त हो जाता हूँ तो बस मुझे अपने चारों ओर सांप ही सांप दिखाई देते हैं । तब मुझे बहुत डर लगने लगता है । इसलिए इस डिब्बे में नेवला लिए जा रहा हूँ । ' उसके मित्र ने कहा कि नशे में काल्पनिक सांप होते हैं , फिर उनसे डरना कैसा ? ' वह नशेड़ी बोला _ ' हाँ , पर नेवला इस बक्शे में काल्पनिक ही है । ' वास्तव में जिस डिब्बे को वह लिए जा रहा था , वह खाली ही था ।
तात्पर्य यह है कि हम जैसी कल्पना करेंगे तो हमारे कार्य ओर प्रयास वैसे ही होंगे , अत: हमें पने मन को इधर -उधर भटकाने की अपेक्षा ऊंची कल्पना में सक्रिय रहना चाहिए । स्वामी विवेकानन्द कहते हैं _ ' यदि कल्पना का सदुपयोग करें तो वह हमारी परम हितैषिणी है । वह युक्ति के परे जा सकती है ओर वहां एक ऐसी ज्योति है जो हमें सर्वत्र ले जा सकती है । कल्पना में सबसे पवित्र कल्पना तो ईश्वर का विचार ही है । अत: कल्पना करें सकारात्मक सोच के साथ ओर तभी कल्पना का औचित्य है ।&&&&&
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