क्षमा बढ़न को चाहिए
'क्षमा ' शब्द सहनशीलता तथा अहंकार के त्याग का सूचक है । क्षमा के धरातल पर दो व्यक्तित्व उभरते हैं _ एक स्वयं आप और दूसरा एक सामने वाला । अहं के वशीभूत होकर जब हम अपनी गलती नहीं स्वीकारते तो क्षमा के विषय में संकोच करते हैं। इस पीड़ा की अनभूति हर मनुष्य को होती है । इसी प्रकार सामने वाला भी सोचता होगा कि हम क्षमा मांगें और वह क्षमा कर देगा । यह द्वंद्व निरंतर चलता है और इसका निराकरण क्षमा द्वारा हो जाता है ।
'क्षमा ' शब्द सहनशीलता तथा अहंकार के त्याग का सूचक है । क्षमा के धरातल पर दो व्यक्तित्व उभरते हैं _ एक स्वयं आप और दूसरा एक सामने वाला । अहं के वशीभूत होकर जब हम अपनी गलती नहीं स्वीकारते तो क्षमा के विषय में संकोच करते हैं। इस पीड़ा की अनभूति हर मनुष्य को होती है । इसी प्रकार सामने वाला भी सोचता होगा कि हम क्षमा मांगें और वह क्षमा कर देगा । यह द्वंद्व निरंतर चलता है और इसका निराकरण क्षमा द्वारा हो जाता है ।
क्षमा-याचना और क्षमा-दान मानसिक वातावरण से सम्बद्ध है । वास्तव में क्षमा की अवधारणा स्वयं से प्रारम्भ होती है । हमें लगता है कि हम दूसरे को क्षमा करते हैं. पर वास्तविकता यह है कि क्षमा की समस्त प्रतिक्रियाएं स्वयं पर लागू हैं । जैसे-जैसे हम इस क्षमाशीलता के मार्ग पर अग्रसर होते हैं तो इसके सु -परिणामों से अभूतपूर्व सुखानुभूति के साथ ही तनावमुक्त जीवन की प्राप्ति होती है ।
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