मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

माया मिली न राम

माया मिली न राम 


माया से तात्पर्य उस पदार्थ , उस वस्तु या उस परिणाम से है जो कागज के पुष्प की तरह देखने में अत्यंत सुंदर है , परन्तु गंध -विहीन है अथवा उस सिम्बल पुष्प के समान है जो नेत्रों को ही नहीं अपितु मन को भी अत्यधिक लुभा लेता है । पर परिणाम में वह निष्फल ही रहता है । परिणामत: अज्ञानी , रागी और मोहि प्राणियों को उसकी सुन्दरता अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है । इसी प्रकार दृश्यमान जगत द्रव्य की माया का ही रूप है ।

कहीं स्पर्श इन्द्रिय को प्रिय पदार्थ अपनी माया फैला रहे हैं , कहीं रसना को सुस्वादु रसास्वादन प्रदान करने वाले पदार्थ अपना मधुर रस विकीर्ण कर रहे हैं । एक बार इस बाह्य माया से परे अन्तरंग की माया की ओर दृष्टिपात करना चाहिए और इसको अपने जीवन में अनुभूत भी करना चाहिए । तथा शांति का स्रोत यहीं से ही प्रस्फुटित होगा ।

प्राणियों द्वारा सम्पादित प्रत्येक मानसिक , वाचिक तथा कायिक क्रिया का फल उन्हें अवश्य ही प्राप्त होता है । उपजाऊ भूमि में बोया हुवा बीज व्यर्थ नहीं जाता । इसी प्रकार प्राणियों द्वारा किये गये आचरण का फल उन्हें अवश्य ही प्राप्त होता है ।  व्यापारिक कार्यों में किये जाने वाले मिलावट के कार्यों का फल तब तक ही अच्छा द्दिखता है , जब तक कुछ पुण्य साथ में है । अन्यथा सैम्पल भरने वाले आकर मय ब्याज के ले जाते हैं । समाज व देश की राजनीति के चक्कर में पड़े नेता अपने पक्ष को ऊंचा उठाने हेतु माया की चरम सीमा का भी उल्लंघन कर देते हैं । इसके परिणाम स्वरूप समाज और देश विनाश के कगार पर जा रहा है । तथा ऊंचे से ऊंचे नेता माया का भंडाफोड़ होने पर जमीन पर बिठा दिए जाते हैं ।जिनकी प्रशंसा के गुण-गान होते हैं , उनकी निंदा होने लगती है । &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&



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