शनिवार, 2 अप्रैल 2011

गाँठ लगा कर धागा डालिए

गाँठ लगा कर धागा डालिए 





आहार करने की विधि जन्मजात शिशुओं को भी सिखाई नहीं जाती ; वह स्वत: ही अपना मुख चलाने लगता है । मानव शिशुओं की तो बात ही क्या है ? छोटे-छोटे कीट-पतंगे भी इस क्रिया से अनभिज्ञ नहीं रहते । दाना चुगना , अपना भोजन खोजना व भोजन करना उन्हें समुचित रूपेण ज्ञात होता है । वे आई हुयी आपत्ति का आभास होने पर भयभीत हो पीछे हटना व अपनी सुरक्षा करना भली भांति जानते हैं । काम-सेवन की प्रवृत्ति से सभी जीव परिचित हैं ।



अभ्यास का अर्थ है पुरुषार्थ अथवा किसी भी कार्य को सीखने या उसमें निपुणता प्राप्त करने का प्रयत्न अभ्यास कहा जाता है । कुछ क्रियाएं ऐसी हैं , जिनके हम अभ्यस्त हो चुके हैं । अभ्यास करते समय प्रतिक्षण -प्रति दिन नवीन-नवीन उप्लब्द्धियाँ होती रहती हैं । जिस प्रकार एक विद्यार्थी ज्ञान का अभ्यास करते समय कुछ नये तथ्यों से परिचित होता है । उसी विषय को पुन:-पुन: दोहराना अच्छा नहीं लगता ।


हम भी उस प्रथम दिन का स्मरण करें जिस दिन हमने प्रथम बार आहार -दान किया था , प्रथम बार प्रभु की पूजा की थी , स्वाध्याय किया था , उस दिन जो आनन्द की अनुभूति हुयी थी । उसमें यदि क्रम से वृद्धि हुयी है तब तो हम अभ्यासी हैं अन्यथा अभ्यस्त हैं का लक्षण कहीं रुक जाना , अटक कर रह जाना नहीं , वह तो पथिक की भांति अपने पथ पर एक-एक कदम आगे बढ़ाता हुवा बढ़ता जाता है । अपने संकटों का सामना करता है , परन्तु लक्ष्य से च्युत नहीं होता । जब हम एक-एक कदम आगे बढ़ते जायेंगे तभी तो हमारा पथिक कहलाना सार्थक है , अन्यथा गाँठ -रहित धागे से सहित सूंई के द्वारा वस्त्र सिलने के सदृश शून्य ही रह जायेगा । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

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