गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

दो नौकाओं में सवार

दो नौकाओं में सवार 




जिस प्रकार असावधानी से एक गेंद सीढ़ी पर गिरती है तो वह ऊपर की ओर नहीं , पर सीढ़ी-दर-सीढ़ी नीचे चली जाती है ओर अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाती । इसी प्रकार यह मन एक बार असावधानी में भटका तो नित्य भटकता ही है । वह आत्मस्वरूप को पहचान नहीं पाता ओर धीरे-धीरे अध:पतन करता है । वह नाश की ओर जाता रहता है तथा वह अज्ञानी की संज्ञा में आ जाता है । जो व्यक्ति आत्मचिंतन , आत्मशोधन आदि करता है वह स्वयं को ब्रह्म में समाहित करते हुवे आत्मसिद्धि को प्राप्त करता है ।



आत्मज्ञान के लिए निश्चित रूप से संयम आवश्यक है । सम्पूर्ण शक्तिमान में समाहित व्यक्ति आत्मशोधन करके आत्मसिद्धि प्राप्त करता है । एक बार बोला झूठ जिसप्रकार सैकड़ों झूठों की गणना में आता है ओर उसकी कालिमा झूठे व्यक्ति के रूप में होती है । इसी प्रकार पथ से विचलित व्यक्ति प्रयास के उपरांत भी अपने को सम्भालने में अक्षम होता है । विषयों में फंसा व्यक्ति यदि चिन्तन करता है ओर आत्मबोध नहीं कर पाता तो वह उन्हीं दो नौकाओं में चढ़े व्यक्ति के समान है , जो किसी का सहारा न पाकर डूब जाता है । आधे-अधूरे सैकड़ों कूएं बन जाने पर भी व्यक्ति प्यासा ही रहता है ओर उसकी प्यास किसी भी रूप में शांत नहीं हो सकती।******



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