मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

राम- राम में क्या जाता है ?

राम- राम में क्या जाता है ?






मानव स्वभाव में विनम्रता जन्मजात धीरे -धीरे विकसित होती है । जब वह जड़ें जमा लेती है तो फिर आदत बन जाती है । दूरदर्शी माता-पिता अपने परिजनों को सद्गुण की सम्पत्ति प्रदान कराते रहते हैं । इस गुण सम्पत्ति के आधार पर मानव विकास के पथ पर अग्रसर होता है । सज्जनता का प्रथम सोपान विनम्रता से शुरू होता है । समान आयु के यहाँ तक  छोटों के साथ भी वार्तालाप और व्यवहार इस प्रकार किया जाना चाहिए जैसे उनके महत्त्व को स्वीकार कर सम्मान दिया जा रहा हो । इसलिए प्राथमिक प्रयोग यह है कि वाणी से मधुर वचन कहे जाएँ । किसी को भी यह अनुभव न होने दिया जाये कि उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखा जा रहा है । वह इस कटु प्रतिक्रिया को भूल नहीं पाता और उसका शत्रु बन जाता है । मनुष्य सम्मान चाहता है । यह उसकी आत्मिक आवश्यकता है ।


आत्मा महान है और उसका अपना गौरव है । भले ही दुर्गुणों के कारण उसे धूमिल कर लिया गया हो । फिर भी यह प्रवृत्ति बनी रहती है और वह उस ओर आकर्षित होती है कि जिस ओर सम्मान मिलता है । आवश्यक नहीं कि किसी की सहायता की जाये और उसकी इच्छानुसार सहयोग दिया जाये । इसके लिए उसे भला-बुरा कहने की आवश्यकता नहीं है । इसमें अपनी विवशता बताते हुवे भी इंकार किया जा सकता है और उसे इस योग्य समझकर आशा लेकर आने के लिए धन्यवाद दिया जा सकता है । आगन्तुक के आने पर उसे बिना छोटे-बड़े का ध्यान रखे नमस्कार कहना , बैठने के लिए आसन देना और आगमन की प्रसन्नता प्रकट करते हुवे समाचार पूछना यह एक सामान्य शिष्टाचार है । यह व्यवहार तो प्रत्येक के साथ होना चाहिए कि किस कारण आगमन हुवा ? मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? इसमें कुछ पूंजी नहीं लगती । पर अपनी छाप दूसरों पर पड़ती है । लोक-व्यवहार की दृष्टि से भी शिष्टाचार का पालन अत्यावश्यक है । इससे दूसरे व्यक्ति को अपनी सज्जनता की छाप स्वीकारते बनती है और मित्र बनते हैं । यह सामान्य शिष्टाचार भी समय आने पर बड़ा काम देता है और प्रशंसायुक्त प्रचार करता है ।*********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें