मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

देखिये पर अच्छा देखिये

देखिये पर अच्छा देखिये 



अखिल विश्व में नृत्य-गान , नाटक , नोटंकी आदि अनगिनत माध्यमों से मन को रंजन करने की प्रक्रियाएं समय-समय पर प्रचलित होती रही हैं । वर्तमान में हैं और भविष्य में भी इनकी श्रृंखला सतत गतिशील रहेगी । रूप बदल सकते हैं , पर वस्तु नहीं बदलती । प्राचीन काल में जहाँ नृत्य , नाटक तथा रासलीला आदि के माध्यम से मानव अपना मनोरंजन करता था वहां आज टेलीविजन को ही सर्वोपरि माना जाता है तथा उसके सामने सम्पूर्ण साधन गौण हो गये हैं ।


अस्तु , सच्चे मनोरंजन को पहचान कर स्वस्थ मानसिकता का ही परिचय देने का प्रयास करना चाहिए ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें