गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

राम जो सब जगह रमा रहे

राम जो सब जगह रमा रहे 

रामनवमी आदर्शों और मर्यादाओं अवतरण दिवस है । साथ ही यह शाश्वत , सनातन और चिरन्तन सत्य की अभिव्यक्ति का पुण्य क्षण भी है । यह सत्य है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं आदि शक्ति सीता ने आदर्शों की स्थापना के लिए ही जन्म लिया था। हजारों वर्षों के बाद भी राम और सीता हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं । वास्तव में पूर्ण रामायण ही आदर्शों का भंडार है । आदर्श राज-धर्म , आदर्श भाई-प्रेम । आदर्श गृहस्थ -जीवन , वचन-बद्धता के साथ -साथ सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान , त्याग , वैराग्य तथा सदाचार की शिक्षा देने वाला वाला है ।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भारतीय धर्म साधना मूलत: ब्रह्म के रूप में इस चराचर जगत में परिव्याप्त होने में अपनी आस्था को व्यक्त करती है । वस्तुत: राम शब्द निराकार एवं सकल ब्रह्म के रूप में है । आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण के युद्ध कांड में राम को भगवान विष्णु से अभिन्न माना है । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय मनीषा मर्यादा पुरुषोत्तम राम को सच्चिदानन्द ब्रह्म मानकर उन्हें सर्विच्च सत्ता पर पूजती रही है । ' युद्ध कांड ' में ही कहा गया है कि विश्व की सृष्टि , स्थिति एवं अंत की सूत्रधारिणी आद्यशक्ति सीता जगत का कारण है ओर चेतना शक्ति ओर एवं जगत का स्वरूप है। भाषा शास्त्रियों के अनुसार भी सीता शब्द का अर्थ पृथ्वी से उत्पन्न है । जो निश्चय ही सृष्टि के सृजन , पोषण एवं संहार की सूत्रधार शक्ति के लिए आया है । राम की शक्ति बनकर ही सीता अवतरित हुयी । महाकवि तुलसीदास ने दर्शन के इसी सूक्ष्म रूप को मनोहारी रूप में व्यक्त करते हुवे ब्रह्म एवं शक्ति को इस तरह ही अभिव्यक्त किया है ।@@@@@@@@@@@@@@@



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