बुधवार, 20 अप्रैल 2011

हम भी भगवान् की सुनें

हम भी भगवान् की सुनें 


भगवान ने सब की सुनी है , उन्होंने सबको भाग्यवान बनाया है , यह कहकर ही जो मैं हूँ और वही तुम हो । वह निराकार है । हमारी तरह उसका शरीर नहीं है , फिर भी हम अपनी तरह उसकी साकार कल्पना करते हैं । हमारी मान्यता है कि भगवान ने सृष्टि की रचना की है । हर प्राणी की उपासना , आराधना और प्रार्थना-निवेदन केवल वही सुनते हैं तो सभी अंश सक्रिय होते हैं ।

शब्द अविनाशी है इसलिए वह ब्रह्म है । उसकी व्याप्ति प्रकृति में है । जब भगवान अनुकम्पा , दया या कृपा करते हैं , तभी सब कृपा करते हैं । जो वे चाहते हैं और वही होता है। सृष्टि -रचना का आनन्द उन्हें आल्हाद प्रदान करता है । इसीलिए हमारी प्रार्थना भी वही होनी चाहिए , जो उनकी इच्छा है । अपने लाभ को रखने वाली प्रार्थना किसी भी रूप स्वीकृत नहीं होती है । इसके लिए एक कथा प्रचलित है कि एक व्यक्ति की एक दुलारी पुत्री ने भगवान से वर्ष की प्रार्थना की । उसी व्यक्ति की दूसरी पुत्री ने उससे कहा कि उसके यहाँ कच्चे बर्तन तैयार हैं , अगर पानी बरसा तो तो उनके पकने में बाधा आएगी । अपनी-अपनी मनोकामना पूरी कराने के लिए उसकी पुत्रियों का अनुरोध परस्पर विरोधी था । व्यक्ति के लिए संकट था कि वह किसके लिए प्रर्थना करे । अंत में उसने निर्णय लिया कि भगवान को जो प्रिय और अनुकूल हो तो वह उसे ही क्रियान्वित करे । यही उपयुक्त समाधान था ।

रामचरित मानस में राजा दशरथ भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि राम अयोध्या में रहें । पर उनकी यह प्रार्थना नहीं सुनी गयी ; क्योंकि वह प्रभु की संकल्पना और भावी कार्य -कर्मों के विपरीत थी । सर्व हित में राम को वन-गमन करना था और राक्षसों का वध होना था । पृथ्वी को निशाचर वहीं करना था । स्वार्थ रहित प्रार्थना ही स्वीकार की गयी । श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं कि जब शिशु कातरता से विलाप करता है तो माँ उसकी याचना अवश्य पूरी करती है ।$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
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