मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

मांगिये नहीं आभार मानिये

मांगिये नहीं आभार मानिये 





सामान्यत: हमारी प्रभु से प्रार्थना नहीं , अपितु याचना ही होती है । हम याचक की भांति सदैव प्रभु से याचना ही करते रहते हैं । हम अपनी कमियों को ही देखते हैं और ईश्वर की कृपा को कभी स्वीकार नहीं करते । हम इस विषय में ही सोचते रहते हैं की मेरे पास यह नहीं है या वह नहीं है । किसी के पास सन्तान का सुख नहीं है , किसी के पास पैसा नहीं है । किसी के पास कोठी , कार , बंगला आदि नहीं है ।

अब हम यह सोचें की जिसने इतना कुछ दिया , उसके लिए प्रभु को हमने कभी धन्यवाद नहीं दिया । हम अपने द्वारा किए गये अच्छे कार्यों का श्रेय तो स्वयं को देते हैं और गर्व से कहते हैं की यह सब मैंने किया । इसके विपरीत अपने कर्मों से प्राप्त , असफलताओं का दोष प्रभु को देते हैं और कहते हैं _ ' मैंने तो अच्छा किया था , पर प्रभु यह दुःख क्यों दे रहे हैं ? ' प्रभु तो हमें वही देंगे जो हमारे खाते में जमा है । प्रभु ने हमें कर्म करने की छुट दी है और कहा है _' इसके लिए तुम स्वतंत्र हो और तुम्हारे कर्मानुसार उनके पाप और पुण्य कर्म घटते और बढ़ते हैं । सोने से पूर्व प्रभु का ध्यान करते हुवे प्रार्थना करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा-याचना करें । तथा उस प्रभु का बीते हुवे दिन का धन्यवाद करें की उसने हमें आज अच्छे कार्य करने का अवसर प्रदान किया ।

जैसे एक बालक अपने माता-पिता के पास जाता है , उसी प्रकार प्रार्थना करें की हे! प्रभु आपकी कृपा से दिन अच्छा व्यतीत हुवा । यदि कोई कर्म अनुकूल नहीं हुवा , तब भी प्रभु को दोष न दे कर कहें की प्रभु , आप तो मेरी आत्मा में हैं , जो आपने पहले दिया था , आगे भी देंगे ; सब कुछ आपका ही है । कष्ट मिला है तो सब कुछ आप ही दूर करेंगे । कुंती ने श्रीकृष्ण से जीवन में कष्ट ही मांगे थे ताकि वह उन्हें भूल न सके । उसी प्रकार का प्रयास हमें भी करना चाहिए ।

हम प्रभु से प्रार्थना करें कि हे , प्रभु ! मैं केवल तुम्हारा हूँ और प्रभु तुम मेरे हो । तुम्हारे अतिरिक्त मेरा दूसरा और कोई नहीं है । मैं कभी भी तुमको भूलूं नहीं । मैं तुम्हारी शरण के अलावा कहाँ जाऊं , क्या करूं ? किससेकहूँ , कौन है मेरा ? तुम अपनी शरण में सदा रखना यही मेरी प्रार्थना है ।

******

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें