गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

ख्याली पुलाव

ख्याली पुलाव बनाना 




मानव-मस्तिष्क योजनाओं का एक सफल बैंक है । सदैव कुछ न कुछ विचार करे रहना , नित-नित नूतन योजनायें मन-मन्दिर में संजोते रहना उसका सहज स्वभाव-सा बन गया है । विभिन्न मानवों द्वारा निर्मित की गयी योजनाओं का क्षेत्र भिन्न-भिन्न हो सकता है , उनका काल भी असीमित या सीमित हो सकता है , विशेष बात यह है कि स्वयं के द्वारा सृजित योजनाओं में से दो या चार प्रतिशत योजनायें ही क्रिया रूप में परिवर्तित हो सकती हैं या हो पाती हैं । क्योंकि योजनाओं का क्रियान्वयन भाग्य तथा पुरुषार्थ का खेल है । इस खेल में द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव समवाय के मेल हो जाने पर ही योजनायें सफलता की श्रेणी तक पहुँच पाती हैं । भाग्योदय से योजना सफल हो जाने पर प्राणी अहंकार करता है और सोचता है कि यह कार्य उसने किया है तथा कार्य-सिद्धि के अभाव में दूसरों को दोष देता है । वह रोता , दुखी होता और बेचैन होता है ।

अस्तु , आज तक व्यक्ति ने अनेक योजनायें बनाई होंगी , परन्तु उनका सम्बन्ध वासना और वैभव तक , शरीर और शरीर के आश्रितों तक , स्व और प्रियजनों तक ही सीमित रहा होगा । कभी ऐसी योजना नहीं बनाई कि अब वह राग-द्वेष का वमन कर , कल्मषों का शमन कर , मिथ्यात्व का हवन कर , ईर्ष्या , परनिंदा आदि दुष-परिणामों का दमन कर शुद्ध आत्मलीन होकर चिन्तन और ध्यान करेगा

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